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अपने मन को कैसे शुद्ध करे – How to purify your mind

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मन की अशुद्धि हमें न केवल जीवन से दूर लेकर जाती है बल्कि हमें हमारे समाज की मुख्य धारा से भी दूर ले जाता है. अशुद्ध मन के कारण हमारे जीवन में समस्याएं बढ़ने लगती है. हमारा मन हमारे कण्ट्रोल से बाहर होने लगता है. ऐसा होने से हम अपने ही मन के शिकार बन जाते है.

अशुद्ध मन बेहद ही खतरनाक है. आज कोई बड़ा अपराधी है तो उसकी शुरुआत कभी अशुद्ध मन से ही हुई थी. आज अगर कोई सफल नहीं है तो वो भी अपने अशुद्ध मन के कारण है. मन जब एक बार अशुद्ध होना शुरू होता और उस समय यदि हम सजग नहीं है तो फिर मन हमारे काबू से बाहर होने लगता है. हम बुरी आदतों के शिकार होने लगते है और फिर अपने ही मन के कुचक्र में फंसते चले जाते है.

आज समाज में अगर बुराई है तो इसका मतलब यह है कि अशुद्ध सोच के व्यक्ति समाज में अधिक है. आज किसी खास समाज में यदि असफलता है तो इसका मतलब यह है कि उस समाज में अशुद्ध मन के लोग अधिक है.

इसलिए सजग रहना होगा. अपने ही मन से सजग रहेना होगा. ऐसा नहीं कि आपका मन बुरा है. मन बुरा नहीं है. मन बहुत ही शक्तिशाली है. इसकी शक्ति का प्रयोग हर कोई नहीं कर सकता. अगर इसकी शक्ति का प्रयोग न करना आये तो यह परमाणु विस्फोट जैसा है. जिसका अगर कण्ट्रोल करना न आता हो तो विध्वंसक हो जाता है. यही हाल हमारे मन का है.

शुद्ध मन शांति लाता है और अशुद्ध मन अशांति लाता है. जीवन में जिस जिस ने सफलता की उच्चाईयों को छुआ उसका मन शुद्ध था.

अब बात यह है कि मन अगर अशुद्ध है तो उसे शुद्ध कैसे किया जाये. इसके लिए आपको सजग होना होगा. सजग होना होगा अपने ही विचारो के प्रति. कुछ भी करने से पहले थोड़ा सोचना होगा.

सोचने की, चिंतन करने की और मनन करने की एक आदत बनानी होगी. अपने मन में चलने वाली हर सोच पर विश्वास करना बंद करना होगा. हम अगर आँख मूंद कर अगर हम अपने ही मन पर भी विश्वास करने लगेगे तो जीवन अँधेरे की और बढ़ने लगेगा.

याद रखिये अशुद्ध मन कभी भी आपको खुश नहीं रख सकता. इसलिए थोड़ा सा अपने ही मन के बारे में भी सोचने की आदत डालनी होगी. हमारी समस्या यह है कि हम खुद को केवल शरीर मान कर ही जीते है. हमारे मन की ओर कभी हमारा ध्यान जाता ही नहीं. शरीर में अगर थोड़ी से भी समस्या आ जाये तो हम तुरंत सजग हो जाते है और मन की समस्या को हम समस्या मानते ही नहीं.

सजगता बेहद जरुरी है. रोजाना कुछ समय अकेले अवश्य बिताये. अकेले सैर करने जाये. अकेल बैठ कर कुछ लिखना शुरू करे. अकेले बैठ कर अपने बारे के सोचना शुरू करे. अकेले बैठ कर अपने आसपास के जीवन के बारे में सोचना शुरू करे.

एक प्राणयाम जिसे भ्रामरी प्राणयाम कहते है. वो रोजाना करे. रोजाना ध्यान करने की आदत डाल ले.

एक बात जो सबसे अहम् है कि नकारात्मक लोगो से उचित दुरी बना कर रखे. अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो अपनी संगति को बदलना होगा.

सबसे अहम् आपको अपने ही मन के प्रति सजग रहना है. अपने विचारों के प्रति सजग रहना है.

 

ध्यान साधना में आने वाले विघ्न और उनके समाधान – Meditation Problem Solving

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ध्यान, साधना में आते है यह 9 प्रकार के अवधान

 

योग साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक के रास्ते में तरह तरह के विघ्न आते है जिससे कि अक्सर साधक अपने पथ से विचलित हो जाते है. कई बार यह विघ्न इतने तीव्र होते है कि साधक को पता ही नहीं चल पाता. योग साधना निरन्तर चलती रहे तभी साधना में अच्छे रिजल्ट्स मिलते है. एक बार साधक अगर पथ भ्रष्ट हो जाये तो जल्दी से वापिस आना भी मुश्किल हो जाता है.

 

9 प्रकार के अवधान है जो साधना मार्ग में हर साधक के आगे आते है. इन विघ्नों के बारे हर साधक को जानना आवश्यक है.

महर्षि पतंजलि ने पतंजलि योग सूत्र में सूत्र संख्या 30 में इसके बारे में बताया है.

यह 9 विघ्न इस प्रकार से है

  1. शरीरिक रोग या मन सम्बन्धी रोग
  2. अकर्मण्यता – कुछ भी न करने का मन करना
  3. संदेह – खुद पर और योग पर संदेह उत्पन्न हो जाना
  4. योग साधना में बेपरवाही बरतना
  5. शरीर में भारीपन के कारण आलस्य आना
  6. वैराग्य की भावना अचानक ख़त्म हो जाना
  7. मिथ्याज्ञान आ जाना – यानि रस्सी को सांप और सांप को रस्सी समझना
  8. चित की चंचलता बढ़ जाना
  9. समाधि की अप्राप्ति – यानि समाधि को छूते छूते रुक जाना

यह सारे के सारे विघ्न है जो साधना के मार्ग में हर साधक के सामने किसी न किसी रूप में आते है. अगर साधक सचेत है तो सही नहीं तो ये विघ्न साधक को उसके मार्ग से हटाने में कामयाब होते ही है.

यह वास्तव में चित की चंचलता की वजह से होते है. इन विघ्नों को योग के अन्तराए भी कहते है.

इसका  समाधान क्या है?

पहला तरीका एक अच्छे गुरु का होना जो आपको हरदम एक उचित दिशा देता रहे.

दूसरा तरीका है ॐ का उच्चारण. ॐ, प्रणव, इक ओंकार एक ही है. अगर आप हिन्दू धर्म से नहीं है या फिर किसी कारणवश ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते है तो इसकी जगह भ्रामरी प्राणायाम भी कर सकते है.

तीसरा तरीका है मन ही मन ॐ का जप

चोथा तरीका है शाश्त्र अध्यन करना. अपने धर्मानुसार किसी भी शाश्त्र का आप अधयन्न कर सकते है.

सबसे जरुरी है निरंतर प्रयास. चाहे कुछ भी मन में आये फिर भी निरंतर प्रयास करना अति आवश्यक है.

 

 

क्या करे जब साधना में अंग कांपने लगे

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ध्यान साधना खुद को जानने के लिए और ईश्वर को समझने के लिए की जाती है. हमारी सबसे बड़ी अड़चन हमारा खुद का मन है. साधना में हम अपने मन को ही साध रहे होते है. मन को साधते साधते बहुत सारे विकार मन में पैदा होने लगते है. मन के इन विकारों का असर हमारे शरीर पर हमारे मन पर और हमारी अध्यात्मिक यात्रा पर होने लगता है.

ध्यान करते करते कई बार अचानक शरीर के किसी अंग में अचानक कम्पन होने लगता है. कई बार यह अंग जोर से फड़फाड़ने भी लगते है. जिस से कई बार साधक विचित्र रूप से डर जाता है.

मन को काबू में करना इतना आसान कार्य नहीं है. कई बार साधन करते करते मन और भी अधिक विक्षिप्त होने लगता है. हालंकि यह लक्षण हर साधक में नहीं दिखते. इसलिए किसी भी प्रकार की साधना में एक अच्छे गुरु का होना बहुत जरुरी है. इसलिए साधक को मालूम होना चाहिए की किस स्थिति के उसे क्या करना है.

कई बार स्वास-प्रवास तेज़ होने लगता है. सांसे बहुत ही तेज़ी से चलने लगती है. प्राण बड़ी तेज़ी से अंदर बाहर होने लगता है. ऐसे भी भी साधक बहुत डर जाता है. लेकिन यदि पहले से ही इन सब बातों के बारे में मालूम हो साधन में आसानी होती है.

कई बार कोई सांसारिक ईच्छा पूर्ण न होने के कारण मन में एक अलग ही प्रकार की उदासी आ जाती है. साधक के न चाहते हुए भी यह उदासी बनी रहती है और किसी भी सांसारिक मनोरंजन से यह उदासी दूर नहीं होती.

इस तरह के विघ्नों से यह पता चलता है कि हम अपनी  साधना में आगे तो बढ़ रहे है लेकिन हमें अपने साधन को बदलने की आवश्यकता है और अपनी साधना में नए साधन जोड़ने की आवश्यकता है.

अब बात आती है कि इस प्रकार की समस्या को दूर कैसे किया जाये. अकसर हम इन समस्यायों के लिए एलोपैथी या अन्य दवाइयों का सहारा लेने लगते है|

ऐसे में हमें योग गुरु की मदद से समस्या का समाधान ढूँढना चाहिए.

यह समस्या जितनी विकराल दिखती है इसका समाधान उतना ही आसान है. इसका समाधान पतंजलि योग सूत्र में दिया गया है.

पतंजलि इस समस्या के निदान के लिए प्रणव का सहारा लेने की सलाह देते है. ॐ का उच्चारण करने से इन सभी समस्याओं से निजात मिलने लगता है. एक ही तत्व का अभ्यास करना चाहिए.

जैसे जैसे ॐ का उच्चारण साधक करता है वैसे वैसे उसके मन का विचलन घटता चला जाता है. ॐ शरीर में एक नए तरह का विधुत प्रवाह होने लगता है. ॐ के उच्चारण से पैदा हुआ विधुत प्रवाह ही इस समस्या से बहार निकाल कर आता है.

 

 

 

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जानिए अपने ही मन की कमजोरियों के बारे में

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Know Your Mind

मन बहुत ही विशाल है बहुत ही विशाल. पतंजलि ने बताया की चित की वृतियों का निरोध ही योग है. पतंजलि योग सूत्र में विभिन्न समाधियों का वर्णन है. योग के अभ्यास के माध्यम से मन जैसे जैसे नियंत्रण में आने लगता है तो तब पैदा हुई मन की विभिन्न स्थितियों को हम समाधि कहते है. पतंजलि ने समाधि का नाम दिया है. जैसे मन का कुछ भाग नियंत्रण में आया तो एक तरह की समाधि हुई. फिर और उसके आगे का भाग नियंत्रण में आया तो एक अन्य तरह की समाधि हुई. इस तरीके से साधक मन की बाड़ को तोड़ता हुआ विभिन्न प्रकार की समाधियों का अनुभव करता हुआ अध्यात्म की यात्रा में खुद के अंदर की ओर आगे बढ़ता है.

पांच तरह की चित की वृतियों के माध्यम से मन भागता है. मन की एक उपरी सतह है जिसके कारण व्यक्ति सुने हुए और देखे हुए प्रलोभन रूपी सांसारिक सुखो की ओर भागता है. यानि कि बाहरी सुखों की ओर मन भागता है. सुनी हुई बातों की ओर. जो मन में बाहरी विचार घूमते रहते है उनमे मन भागता है. यह मन की त्रुटि है या यह कह सकते है कि मन की यह एक कार्य शैली है कि किसी की भी बात सुन कर हमारा मन क्षणिक सुख के लिए ताने बाने बुनने लगता है. मन के अंदर अपने विचार तो है ही परन्तु बाहरी विचार मन पर अत्यधिक प्रभाव डालते है.

अगर इस समस्या का समाधान कर लिया जाये तो बच्चों को बिगड़ने से बचाया जा सकता है. समाज में बिगड़े हुए बच्चों को संवारा जा सकता है. इसके लिए मन की टेक्नोलॉजी को समझना होगा. हमारे जीवन का ज्यादातर हिस्सा तो बाहरी विचारो की भेट ही चढ़ जाता है. क्यूंकि सबसे ज्यादा हम अपने ही परिवेश से प्रभावित होते है. यह सब ऑटोमेटिकली चल रहा है. क्यूंकि मन बना ही इस तरह हुआ है. मन की इसी कमजोरी की वजह से ही आंतकवाद है. क्यूंकि बाहरी विचारो का मन पर अत्यधिक असर पड़ता है. नशे की लत युवाओं में इसी वजह से पैदा होती है. लुभावनी बाते जैसे सामने आई मन उसी समय भागने लगा.

पतंजलि ने समाधान बताया है. मन की इस समस्या का समाधान बताया है. एक शब्द आता है पतंजलि योग सूत्र में “वशीकार वैराग्य”.. पतंजलि योग सूत्र संख्या 15.

देखे और सुने हुए विषयों में सर्वथा तृष्णारहित चित की जो वशीकार नामक अवस्था है वह वशीकार वैराग्य है.

इसका मतलब यह है कि मन की उपरी सतह जब वश में आती शुरू हो जाती है तब की स्थिति. उपरी सतह मतलब मन का वो भाग जिसमे बाहरी विचार अपना जोर दिखा सकते है. वशीकार वैराग्य जब घटित हो जाता है तो बाहरी लुभावने विचार अपना असर दिखाना बंद कर देते है. काफी हद तक चुपी छा जाती है. जब वशीकार वैराग्य तक व्यकित पहुच जायेगा तब कोई आकर किसी लुभावनी विषय/वस्तु के बारे में लुभाने की कौशिश करेगा तो मन के अंदर उस विषय/वस्तु के प्रति प्रतिउत्तर नहीं पैदा होगा.

यह कमाल की जीत होगी क्यूंकि आमतौर पर व्यक्ति बाहरी विचारो में अंदर ही जीता है. और इस स्थिति से बाहर निकलना वशीकार वैराग्य कहलाता है. बाहरी भोगो के प्रति तृष्णा का मिट जाना. बड़े कमाल का अनुभव होता है. इसलिए ही महर्षि पतंजलि ने इस स्थिति को काबू पाने को सम्प्रज्ञात समाधि का नाम दिया. इस समाधि में चित वृति का समाधान हो जाता है और चित की वृतियां बाहर भागने से रुक जाती है.

लेकिन यह जो हो रहा है मन की बाहरी सतह पर हो रहा है. क्यूंकि अभी बाहरी वृतियां ही रुकी है. अंदर जो था वो वैसा ही है जैसा वो था. क्यूंकि चित की वृतियां अंदर अवचेतन मन में बीज के रूप में विद्यमान रहती है.

तो हम बात कर रहे थे सम्प्रज्ञात समाधि की. यह सम्प्रज्ञात समाधि भी एक क्रम से सिद्ध होती है. जो यह चित की वृतियां है इनका सम्बन्ध वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता है. इन चारो को पहले हम समझेगे कि इनका मतलब क्या है? फिर महर्षि पतंजलि ने इन चारो का निर्मूलन करने के लिए क्या कहा उसके बारे में बात करेगे.

बाहर से जो ज्ञान हमें मिलता है या फिर हमारे अनुभव ने आता है वो हमारे मन में जमा होता रहता है और समय आने पर यह ज्ञान, यह अनुभव परिस्थिति के अनुसार जागृत हो जाता है. इसे वितर्क स्थिति कहते है. यहाँ जो जमा हुआ वो बाहर से मिला हुआ है इस बात को याद रखना है. जब ध्यान साधना से मन अपने आप ही बाहरी विषय वस्तुओं का निरोध करने लगता है तो मन की अवस्था को सवितर्क समाधि कहते है. इसे सविकल्प समाधि भी कहते है.

अब बात को थोड़ा ओर गहराई से समझना होगा. सविकल्प समाधि. यहाँ मन ने बहिये पदार्थो को ग्राह तो करना बंद कर दिया परन्तु उन पदार्थो से सम्बंधित शब्द, अर्थ और ज्ञान अभी भी मन के अंदर है. यानि कि जिन बाहरी पदार्थो के पीछे मन ने भागना बंद किया है उनका विकल्प अभी भी मोजूद है. अवस्था यह भी सम्प्रज्ञात समाधि की ही है परन्तु अभी यात्रा शुरू हुई है.

जब मन सम्बंधित पदार्थो के शब्द और उनके अर्थ और उनके ज्ञान का भी निरोध करने लगता है तो इसे निविर्तर्क समाधि या फिर निर्विकल्प समाधि कहते है. इसका मतलब यह हुआ की अब केवल मन बाहरी पदार्थो से नहीं छुटा परन्तु बाहरी पदार्थो के जो विकल्प थे वो भी समाप्त हो गए.

इस तरह से दो प्रकार की समाधियों को हमने समझा. सविकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि.

अब और आगे बढ़ते है अंदर की ओर.

अभी मन की बाहरी सतह पर काम किया अब थोड़ा अंदर की बात करते है. क्यूंकि सविकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि के बाद बाहर की लुभावनी बातों से तो पीछा छुट जाता है और मन भागना बंद कर देता है. चित की बाहरी वृतियां शांत हो जाती है. बाहर से संगृहीत विचारों का क्रम बंद हो जाता है परन्तु स्वयं के अंदर अंदर विचार चलते रहते है क्यूंकि अभी बाहर से आना जाना बंद हुआ है. अब निर्णय भीतर से आने लगता है. विचार इसी अवस्था को कहते है. पहले जो बात हो रही थी वो वो तर्क-वितर्क की हो रही थी. अब हम मन की उस अवस्था की बात कर रहे है जहा विचार पैदा हो रहे है अब यह आपके अपने विचार है पहले जो तर्क वितर्क थे वो बाहरी थे.

अब मन की एक आन्तरिक लेयर की ओर बढ़ेगे जहाँ विचार पैदा हो रहे है. अब क्या होता है कि जब बाहर के विचार समस्यां करनी बंद कर देते है तो अंदर के विचार आकर खड़े हो जाते है. हमें ध्यान के द्वारा इस अवस्था को भी पार करना होता है.

पहले निर्णय बाहर से आ रहा था उस पर हमने जीत हासिल कर ली. अब निर्णय भीतर से आ रहा है. जिसे विचार कहते है जैसा कि मैंने बताया आपको. अब ध्यान की शक्ति से मन के इस भाग को भी कण्ट्रोल में लेना है ताकि वो विचारो का भी निरोध करने की स्थिति में आ सके. विचार भी एक तरह से पदार्थों के सूक्ष्म रूप ही होते है. तो ध्यान की यात्रा में आगे बढ़ते हुए मन जब विचारों का जब निरोध कर देता है. तो उस स्थिति को सविचार समाधि कहते है. अब मन में अथाह शांति उठने लगेगी. लेकिन जैसे सविकल्प समाधि में था वैसे ही यहाँ भी होता है कि विचारो का निरोध तो हो जाता है परन्तु उनसे सम्बंधित शब्दों का, उनके अर्थ और उन शब्दों का ज्ञान अभी भी रहता है. विचारो का तो निरोध तो हो जाता है परन्तु शब्दों का और उनके अर्थो का अस्तित्व बना रहता है. जब ध्यान के द्वारा हम विचारों के साथ साथ विचारो से सम्बंधित शब्दों का और उनके अर्थो का और उनसे जुड़े हर प्रकार के ज्ञान का भी निरोध कर देते है तो इस समाधि का नाम होता है निर्विचार समाधि. यह वो स्थिति है जहाँ विचार तो उठते है और इसके साथ साथ सम्बंधित शब्दों का और उनके अर्थो का और उनसे जुड़े हर प्रकार के ज्ञान का भी उन्मूलन हो जाता है. यहाँ दूर दूर तक किसी प्रकार की कोई भी हलचल नहीं होती मन में. विचारो का कर्म सर्वथा रुक जाता है. जब विचारो का कर्म रुक जाता है तो साधक को आनंद की अनुभूति होने लगती है. यह आनंद भीतर के अनुभव के कारण आता है.

यह वो आनंद होता है जिसकी आपने कई बार

 

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दो प्रकार की साधनाएँ

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इस दुनियां में दो प्रकार की साधनाएँ है.

स्वशक्ति साधना

परशक्ति साधना

स्वशक्ति साधना

स्वशक्ति साधना में साधक खुद की शक्ति से खुद को जानने की चेष्टा करता है. अपने मन को विकसित करता है. अपनी बुद्धि को विकसित करता है. विभिन्न प्रकार के साधन अपनाता है. साधक का मुख्य उदेश्य केवल अपनी चेतना को विकसित कर उस विकसित चेतना को ब्रह्मा में लय करना होता है.

मुख्यतया मन को रोकने पर कार्य किया जाता है. चित की वृतियों का निरोध किया जाता है जैसा की महर्षि पतंजलि ने समझाया है. जैसे जैसे साधक थोड़ा सा कामयाब होता है उसका बल भी बढ़ता चला जाता है. इसमें साधक को नए नए और अनूठे अनुभव भी होने लगते है. कर्मयोग, ध्यान योग इस साधना का मुख्य साधन है.

इसमें गुरु का होना अवश्य होता है. क्यूंकि इस मार्ग में तरह तरह की समस्याएं भी आने लगती है जिनका निवारण आत्म जाग्रत गुरु ही कर सकते है.

परशक्ति साधना

इस साधना में भक्ति मुख्य है. आत्मसमर्पण मुख्य है. इस मार्ग में गुरु एक ही होता है. सबका गुरु एक ही होता है. वो होते है स्वयं ईश्वर. एक ही परमात्मा हर किसी का गुरु होता है. इस साधना में आपका खुद का कोई साधन नहीं होता. एक ही साधन होता है भक्ति. हरपल उसकी याद में. निरंतर चिंतन. बिना एक पल गवाएं एक ही ईश्वर का ध्यान. जैसा परमात्मा रखे वैसा ही रहना. न कोई शिकायत न कोई शिकवा. बस केवल और केवल उसका ध्यान. इस में खुद शक्ति नहीं बल्कि उसकी इच्छा पर निर्भर रहना होता है.

 

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कौन है शिव?

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उपनिषद क्या कहते है?

हमारे उपनिषद कहते है कि यह जो चारो और दिखाई दे रहा है वो सब कुछ ब्रह्मा है. इसका मतलब है की यह सब कुछ एक ही शक्ति से बना हुआ है. वो उर्जा वो शक्ति ईश्वर है. वो बना हुआ नहीं है वो बना रहा है. मानव देह उसकी एक रचना है. लेकिन जो दिखता है वास्तव में केवल वही सत्य नहीं होता. यही बात मानव जन्म के साथ भी है.

मानव देह के साथ एक मन भी है. बिना मन के इंसान आगे बढ़ ही नहीं सकता. मानव की तरक्की के पीछे मानव का मन है. उसके बाद भी बात यही समाप्त नहीं हो जाती. मानव देह है, और उसके पीछे एक मन है और उन दोनों के पीछे एक अनजानी शक्ति आत्मा भी है.

ऋषियों ने जो खोजा

हमारे ऋषियों ने खोजा उन्होंने खोज की कि आत्मा वास्तव में ब्रह्मा का ही अंश है जिसके कारण यह सारा का सारा संसार है.

हम मानव चार अवस्थाओं से लगतार गुजरते है. जागृत अवस्था, स्वप्न अवस्था, सुषुप्ति और तुरिया. जैसे सब कुछ इन आँखों से अलग अलग दिखाई दे रहा है वास्तव में ऐसा है नहीं. वास्तव में सब कुछ ही उर्जा से बना हुआ है. वही उर्जा ही ईश्वर है. लेकिन क्यूंकि हम अपने ही मन के कारण अलगाव की भाषा समझते है. इसलिए हमें अलगाव दिखता है.

जागृत अवस्था ब्रह्मा है

मानव देह के चार स्थान नाभि, हृदय, कंठ और मस्तक. इन चारो स्थानों को एक ही ब्रह्मा प्रकाशित कर रहा है. जागृत अवस्था ब्रह्मा है. स्वपन अवस्था विष्णु रूप है, सुषुप्ति अवस्था शिव है और तुरिया अक्षर रूप है.

शिव सदा शिव है. वो कंठ में है वो ही हमारी सुषुप्ति अवस्था है. जागृत अवस्था को हम जानते है और अनुभव भी करते है, स्वप्न अवस्था को भी हम जानते है और अनुभव भी करते है. परन्तु सुषुप्ति को हम केवल जानते है वो सही तरीके से हमारे अनुभव में नहीं है.

जो स्वप्न के बाद गहरी नींद की अवस्था है वो सुषुप्ति है. हमें पता चलता है कि हमें गहरी नींद आई परन्तु जैसा जागृत और स्वप्न अवस्था में हमें अनुभव होता है वैसा अनुभव नहीं होता.

शिव सुषुप्ति है

शिव सुषुप्ति है. शिव तक जाना पड़ता है. शिव तक पहुचना पड़ता है. शिव ऐसे नहीं मिलते. शिव को जानना ही उस ईश्वर को जानना है. शिव का स्थान कंठ में बताया है. कंठ में ही विशुद्धि चक्र है. विशुद्धि चक्र जब जागृत होता है तो ज्ञान अपने आप बहने लगता है. ज्ञान अपने आप चलने लगता है. ज्ञान ही शिव है. शिव आयेगें तो ज्ञान बहने लगेगा. यही ज्ञान ही विमान बन कर उस परम शक्ति तक पंहुचा देगा. शिव के पीछे के विज्ञानं को समझ कर ही शिव को जाना जा सकता है. वो कंठ में है और उनका रंग नीला है. विशुद्धि चक्र का रंग भी नीला है. यह वही रंग है जो ध्यान में हर साधक को दिखाई देता है.

नीली रौशनी हमेशा रहस्यमयी रही है. शिव भी रहस्यमयी है. भोले भी है. क्यूंकि शुद्ध है अति शुद्ध है इसलिए भोले भी है. शिव को ध्यान से पाया जा सकता है. शिव तक ध्यान से पंहुचा जा सकता है. एक बार उन तक पहुच गए तो आगे का रास्ता शिव ही तय करवा देंगे.

शिव सदा शिव है

शिव सदा शिव है. इसका भी एक मतलब है. पहली दो अवस्थाएं बन रही है और देह का और मन का अनुभव है. तीसरी अवस्था बन नहीं रही है बल्कि बनाने वाली उर्जा का एक रूप है. पहली दो अवस्थाये नित्य नहीं है परन्तु तीसरी अवस्था नित्य है. इसलिए सदा शिव है.

याद रखिये शिव तक पहुचना पड़ता है.

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What is Swara Yoga?

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What is Swara Yoga

Swara and Yoga

There are two words in this sentence. Swara and Yoga. Swara refers to the flow of breathe in a particular nostril. Human nose has two nostrils. Right nostril; on the right side of the body and left nostril is on the left side of the body. Swara is flow of breathe either in right nostril or in left nostril or in both the nostrils simultaneously.  So swara is flow of air from + nostril or nostrils.

Second word is yoga, a very famous word of today. In Sanskrit language meaning of yoga is union, Union with what? Union with your inner self. Union with your Cause of your existence.  So Swara Yoga means union with the help of science of swara. Science of swara is science of your own breath.

Science of swara

Your breathing is creating some special patterns. These patterns are called breathing patterns. Swara Yoga says a healthy human being must have a right breathing pattern. Different human being have different breathing patterns. This depend upon timing of rising of sun and also depend upon the waxing and waning of moon.

Let’s do an exercise. Can you please notice yourself right now? Can you please observe flow of breathe below your nose and find out which one nostril is more active? To know it exactly just press right side of the nose near right nostril and close the right nostril. Your right nostril is closed now. Be aware of your left nostril. Watch the intensity of flow of air in the left nostril. Now press left side of the nose near left nostril and close the left nostril. Experience the intensity of flow of air in the right nostril. Judge which nostril is more active. If right nostril is more active we name it as Pingla swara, if left nostril is more active we name it as ida swara and if you find both nostrils are equally active; means air flowing equally out of two nostrils; we name it as sushmna Swara.

Pingla, Ida  & Third Sushmna

Now we have three possibilities. One is Pingla Second is Ida and Third is Sushmna

So, pingla is flow of breathe in right nostril. This is sun energy and is concerned with vital force; the prana. This is a positive nadi. Nadi is path of flow of subtle energies.

Ida, is flow of breathe in left nostril. This is moon energy. This is related to our mind. This is a negative nadi.

Third possibility is equal flow of breath in both the nostrils. This possibility is called Susushmna Nadi. This is a neutral nadi.

Shiva Sarvodya Shashtra

What I am telling is given in an Ancient Indian Holy Scripture – Shiva Sarvodya Shashtra – Shiva is Hindu’s Lord. Lord Shiva told this precious art to her wife Mother Parvati.

Flow of breathe in right nostril is concerned with the left hemisphere of our brain.

Flow of breathe in left nostril is concerned with the right hemisphere of our brain.

According to an article published on official website of “The National Centre for Biotechnology Information advances science and health by providing access to biomedical and genomic information, USA”, that an association has been reported between the dominant nostril through which we breathe and the cerebral hemisphere found to be active.    

 Breathing Patterns

We all have a breathing patterns. According to this secret scripture – flow of a breathe in a particular nostril remain about 60 minutes & after 60 minutes a neutral period starts. This neutral period remains 1-4 minutes and breathe start flowing in the second nostril.

Neutral period means flow of breathe in both the nostrils equally. When this happens mind automatically become one pointed. Concentration become sharp. If you meditate in this flow you will enjoy the relaxation. You can try it any time.

Real aim of a yogi is to enhance the time of this particular sushmna flow of breathe. Irrespective of religion this science of breathing is applicable to all human beings.

If you start any physical activity in the time of flow of sushmna; your efforts would not be materialized. If flow of breathe in both nostrils is equal than this is the time for prayers or for the meditation only. 

Now I come to the breathing pattern. I told you that we all have our breathing patterns.

Automatically breathing is changing after every 60 minutes

Automatically breathing is changing after every 60 minutes. This is mentioned in the ancient scripture of India. This change happens according to cycle of moon and rising time of sun. According to Shiva Sarwodya Scripture everyday sun rises decide which nadi should be active on that particular day. It’s also depend on waxing and waning of the moon.

For example when moon is waxing; the first three days  Ida nadi or Left Nostril flow would be active at the time of rise of sun. Next three days Pingla or Right Flow would be active at the time of sun rise in this way next three days it would be Ida and another next three days again Pingla and last three days Ida would flow at the time of sun rise.

If breathe pattern is not going accordingly it means breathing pattern is not right. Wrong breathing pattern may leads one to a physical diseases or a Psychological disorder.

According to this great science if one is going to fall ill in future his/her breathing cycle would starts changing today. If we become aware of our breathing cycle in present we can prevent onslaught of diseases in future. This is only first part of this great science. Rest we will discuss in next coming videos. So I request you to be with us. Subscribe our channel. Be with us.

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What is Vipasana? विपसना क्या है?

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Vipasana

विपसना

श्वास है तो जीवन है श्वास नहीं तो जीवन नहीं. आपके और आपके शरीर के बीच एक connectivity है वो है श्वास. जिस दिन यह कनेक्टिविटी नहीं होगी तो आप आप नहीं होगे और आपका शरीर भी शरीर नहीं मृत कहलायेगा.

लेकिन श्वास लेना हमारा कार्य नहीं है, श्वास तो हमें दी जा रही है, अज्ञात के द्वारा. क्योंकि जब हम सो जाते है तो भी श्वास तो चलती है. बस इसी बात को थोडा गहराई से समझना है कि श्वास चल रही है, अपने आप ही चल रही है. बंद होगी तो अज्ञात के कहने से ही होगी.

विज्ञानं भैरव तंत्र

इस प्रक्रिया में हमें सांसो पर ध्यान लगाना है. श्वासों पर कार्य करना योग नहीं है तंत्र है, विज्ञानं भैरव तंत्र,  योग में श्वासों के द्वारा प्राण उर्जा पर काम किया जाता है. पर यहाँ कुछ और ही बात है.

इसलिए ध्यान साँस की व्यवस्था पर नहीं लगाना बस उसे देखना भर है. पर सूक्ष्म दृष्टि चाहिए,  आसानी से बात बनेगी नहीं. लगता है कि बिलकुल आसान है, पर थोडा मुश्किल है इसलिए अभ्यास जरुरी है. सांसे देने वाला आस पास ही है और जहा भी जाते है वही है, हमेशा साथ है.

पैनी दृष्टी चाहिए

पैनी दृष्टी चाहिए, सूक्ष्म दृष्टि चाहिए, सूक्ष्मता आएगी अभ्यास के साथ ही आएगी. एक बार् बात पकड़ में आ गयी तो रास्ता आसान हो जायेगा.

सांस जैसी है वैसी ही देखनी है, उसे लेने की कोई भी कौशिश नहीं करनी है. सारी की सारी कौशिश उसे देखने की करनी है.

देखना क्यां है

साँस को देखना है, बस आती जाती हुई साँस को देखना है.

किसी भी आसन में बैठ जाये जो आपके लिए सुखद हो, रीढ़ की हड्डी सीधी हो, आँखों को हलके से बंद ही कर ले तो ज्यादा अच्छा है.

भस्त्रिका प्राणायाम

शुरुआत भस्त्रिका प्राणायाम से करेगे. मैं आपको फिर याद दिला दू कि प्राणयाम से हम शुरुआत अवश्य कर रहे है पर हमने इस ध्यान में सांसो को साधना नहीं है बल्कि सांसो को देखना मात्र है.

भस्त्रिका प्राणायाम जैसे ही समाप्त होगा तो कुछ क्षण रुकने के बाद सांस को बाहर निकाल देना है, फिर आने वाली सांसो पर ध्यान गढ़ा देना है. एक भी साँस को बच कर निकलने नहीं देना, एक भी साँस आपकी चेतना से बच कर नहीं जानी चाहिए. सांस लेनी नहीं है, बस देखनी है. सांस तो वैसे भी आपने आप आ रही है और जा भी रही है.

इस अभ्यास में सबसे बड़ी दिक्कत यही आती है कि हम साँस लेने में मशगूल हो जाते है और अपनी चेतना को खो देते है. ध्यान रहे की चेतन रहना है, जैसे ही साँस लेने में लग जाएगी उसी क्षण चेतना लुप्त हो जाएगी. पर हमें अवेयर रहना है साँस के प्रति.

थोडा और गहराई से सोचते है

सांस बाहर से, अनजानी जगह से, अज्ञात से अन्दर आ रही है. आ रही है अज्ञात से देखना है, अन्दर गयी, देखना है, वापिस आने से पहले रुकी जरुर होगी, पकड़ना है इसी लम्हे को, इसी क्षण को, फिर बाहर आई देखना है, फिर वापिस अन्दर आएगी पर वापिस अन्दर मुड़ने से पहले रुकी जरुर होगी, फिर इस लम्हे को, इस क्षण को, इस वक़्त को पकड़ने की कौशिश करनी है अपने अवेयरनेस से, चेतना से, मन भागेगा अचानक भागेगा, तेज़ी से भागेगा, अपनी गति से भागेगा, पर कोई बात नहीं, उसे फिर से पकड़ कर वापिस लाना है साँसों पे, आती जाती हुई सांसो पे.

सजग रहना है. साँस के साथ अन्दर गए, रुके, वापिस मुड़े बाहर की ओर, सांस के साथ बाहर गए, रुके, फिर वापिस मुड़े अन्दर की ओर. पकड़ना है रुकने वाले क्षणों को सजगता से पकड़ना है. आप पकड़ लेंगे कोई मुश्किल नहीं है, अभ्यास मदद करता है.

सिद्धार्थ ने ऐसा ही किया था, पकड़ किया था उन क्षणों को कि कब बुद्ध हो गए मालूम ही नहीं चला, पर इसी तकनीक का प्रयोग करके ही बुद्ध हुए. इस लिए इसे बोद्ध विधि कहते है. बुद्ध इसी विधि के द्वारा निर्वाण को प्राप्त हुए थे. बौद्ध धर्म में इसे अनापानसति योग कहते है.

लेकिन दो सांसो के बीच के अंतराल की चिंता नहीं करनी है की वो कितना होगा, कम होगा या ज्यादा. मन का प्रयोग तो करना ही नहीं है. चिंता कर ली तो फेल हो जाओगे. ऐसा करते हुए जब भी कोई विचार पैदा होगा तो समझना की फेल हो रहे हो. यह वैचारिक साधना तो है ही नहीं, सोचना तो इसमें है ही नहीं, इसमें तो देखना है, विचार आया तो देखना खत्म; सोचना शुरू. इसलिए सोच इस साधना की दुश्मन है. अवेयर रहना है रुकने वाले क्षणों के प्रति, उस अंतराल के प्रति.

इसको आसान बनाने के लिए दो भागो में भी बाँट सकते है कि पहले अन्दर जाती हुई सांस का अन्दर वाला अन्तराल पहचाने फिर बाहर वाले अंतराल पर काम करे.

एक थोडा और आसन तरीका भी है कि जब सांस अन्दर आएगी तो ठंडक देगी और बाहर जाएगी तो हलकी से गरमाहट देकर जाएगी. उस ठंडक और उस गरमाहट को महसूस करते हुए उन अंतरालो पर नज़र रखनी है.

एक आसान तरीका और भी है साँस जब अन्दर बाहर होती है तो पेट में भी मूवमेंट होती है. साँस अन्दर आती है तो पेट फूलता है और बाहर जाती है तो फिर से पानी जगह पर चला जाता है. शुरुआत में यह दो तरीके अजमा सकते है.

कुछ घटित होना शुरू होगा, बहुत कुछ घटित होना शुरू होगा. हजारो साधक इस विधि का प्रयोग करके लाभ ले चुके है.

Categories: Meditation

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