Tag: Sage

ध्यान साधना में आने वाले विघ्न और उनके समाधान – Meditation Problem Solving

No Comments
Join Our Online Courses

ध्यान, साधना में आते है यह 9 प्रकार के अवधान

 

योग साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक के रास्ते में तरह तरह के विघ्न आते है जिससे कि अक्सर साधक अपने पथ से विचलित हो जाते है. कई बार यह विघ्न इतने तीव्र होते है कि साधक को पता ही नहीं चल पाता. योग साधना निरन्तर चलती रहे तभी साधना में अच्छे रिजल्ट्स मिलते है. एक बार साधक अगर पथ भ्रष्ट हो जाये तो जल्दी से वापिस आना भी मुश्किल हो जाता है.

 

9 प्रकार के अवधान है जो साधना मार्ग में हर साधक के आगे आते है. इन विघ्नों के बारे हर साधक को जानना आवश्यक है.

महर्षि पतंजलि ने पतंजलि योग सूत्र में सूत्र संख्या 30 में इसके बारे में बताया है.

यह 9 विघ्न इस प्रकार से है

  1. शरीरिक रोग या मन सम्बन्धी रोग
  2. अकर्मण्यता – कुछ भी न करने का मन करना
  3. संदेह – खुद पर और योग पर संदेह उत्पन्न हो जाना
  4. योग साधना में बेपरवाही बरतना
  5. शरीर में भारीपन के कारण आलस्य आना
  6. वैराग्य की भावना अचानक ख़त्म हो जाना
  7. मिथ्याज्ञान आ जाना – यानि रस्सी को सांप और सांप को रस्सी समझना
  8. चित की चंचलता बढ़ जाना
  9. समाधि की अप्राप्ति – यानि समाधि को छूते छूते रुक जाना

यह सारे के सारे विघ्न है जो साधना के मार्ग में हर साधक के सामने किसी न किसी रूप में आते है. अगर साधक सचेत है तो सही नहीं तो ये विघ्न साधक को उसके मार्ग से हटाने में कामयाब होते ही है.

यह वास्तव में चित की चंचलता की वजह से होते है. इन विघ्नों को योग के अन्तराए भी कहते है.

इसका  समाधान क्या है?

पहला तरीका एक अच्छे गुरु का होना जो आपको हरदम एक उचित दिशा देता रहे.

दूसरा तरीका है ॐ का उच्चारण. ॐ, प्रणव, इक ओंकार एक ही है. अगर आप हिन्दू धर्म से नहीं है या फिर किसी कारणवश ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते है तो इसकी जगह भ्रामरी प्राणायाम भी कर सकते है.

तीसरा तरीका है मन ही मन ॐ का जप

चोथा तरीका है शाश्त्र अध्यन करना. अपने धर्मानुसार किसी भी शाश्त्र का आप अधयन्न कर सकते है.

सबसे जरुरी है निरंतर प्रयास. चाहे कुछ भी मन में आये फिर भी निरंतर प्रयास करना अति आवश्यक है.

 

 

कौन होता है साधू और कौन होता है सन्यासी ?

No Comments

सन्यासी, साधू, बाबा यह कौन होते है.

सन्यासी, साधू, बाबा यह कौन होते है. हम अक्सर बाजारों में, धार्मिक स्थानों में साधू बाबाओं को देखते है और हम उन्हें सन्यासी या फिर साधू कहने लगते है. लेकिन वास्तव में सन्यासी क्या होता है यह जानना बहुत ही जरुरी है. क्यूंकि जो दिखता है वो होता नहीं है और जो जैसा होता है वो वैसा दिखता भी नहीं है.

हम अक्सर पहनावा देख कर ही तय कर लेते है कि फलां व्यक्ति साधू है या फिर सन्यासी है. जो हमारे आगे एक खास पहनावे में आ गया हमने उसे साधू समझ लिया. कोई शिखा रख कर साधू बन रहा है तो कोई लंगोटी बाँध कर. कोई नग्न होकर साधू बन रहा है तो कोई लबादा औड कर.

ऐसे में समझ नहीं आता कि कौन साधू है और कौन नहीं? लेकिन हमें यह बात मालूम अवश्य होनी चाहिए कि कि कौन साधू होता है और कौन नहीं.

संन्यास कर्मयोग के बाद की प्रक्रिया है

संन्यास कर्मयोग के बाद की प्रक्रिया है. पहले कर्मयोग आता है और फिर संन्यास. सन्यासी वास्तव में सांख्ययोगी होता है. सन्यासी के लिए ईश्वर ही सब कुछ होता है. उसके जीवन का लक्ष्य प्रकृति की सेवा होता है.

पहनावा केवल उसको खुद को यह याद दिलाने के लिए होता है कि कभी उसका मन कही भागने की थोड़ी भी कौशिश करे तो उसे याद आ जाये कि वो एक सन्यासी है. वो सांसारिक वस्तुओं के मोह से ऊपर उठा हुआ होता है. उसे कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं लुभाती.

न उसका कोई मित्र होता है और नहीं कोई शत्रु

न उसका कोई मित्र होता है और नहीं कोई शत्रु. न उसे मृत्यु का. उसे न कोई दुख होता है और न ही उसे कोई सुख लगता है. वो कभी कुछ मांगेगा नहीं क्यूंकि उसे सब कुछ अपने आप ही प्रकृति देगी ही.

जब हम अध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ते है और जब संसार के सुख दुःख हमें लुभाते नहीं है. उस समय हमारे जीवन का लक्षण सांसारिक सुख न होकर केवल और केवल परमात्मा हो जाता है तब हम अपने लिए काम नहीं करते बल्कि इस प्रकृति के लिए कार्य करने लगते है. तब हम कर्म तो करते है परन्तु बिना आसक्ति के.

ऐसा करने पर प्रकृति हमारा ख्याल करने लगती है. क्यूंकि उस समय हम सीधे तौर पर प्रकृति से कुछ डिमांड नहीं कर रहे होते. परन्तु प्रकृति का कार्य ही है फल देना. इसलिए हमारे न चाहते हुए भी हमें यह प्रकृति सब कुछ अपने आप ही देने लगती है. साधू वो भी बाँटने लगता है.

इसलिए साधू कभी भी डिमांड नहीं करता. उसके चेहरे पर हमेशा ख़ुशी होगी. ज्ञान उसके अंदर से बहेगा. क्यूंकि ज्ञान का दरिया होता है साधू. साधू की आँखों में होगा तेज़, दमकते है ऐसे चेहरे अंगारे की तरह.

साधू के आसपास की उर्जा पवित्र होती है. जिसका आभास उसके पास जाने से अपने आप ही होने लगता है.

 

 

Categories: Meditation

Tags:

कौन है शिव?

1 Comment

उपनिषद क्या कहते है?

हमारे उपनिषद कहते है कि यह जो चारो और दिखाई दे रहा है वो सब कुछ ब्रह्मा है. इसका मतलब है की यह सब कुछ एक ही शक्ति से बना हुआ है. वो उर्जा वो शक्ति ईश्वर है. वो बना हुआ नहीं है वो बना रहा है. मानव देह उसकी एक रचना है. लेकिन जो दिखता है वास्तव में केवल वही सत्य नहीं होता. यही बात मानव जन्म के साथ भी है.

मानव देह के साथ एक मन भी है. बिना मन के इंसान आगे बढ़ ही नहीं सकता. मानव की तरक्की के पीछे मानव का मन है. उसके बाद भी बात यही समाप्त नहीं हो जाती. मानव देह है, और उसके पीछे एक मन है और उन दोनों के पीछे एक अनजानी शक्ति आत्मा भी है.

ऋषियों ने जो खोजा

हमारे ऋषियों ने खोजा उन्होंने खोज की कि आत्मा वास्तव में ब्रह्मा का ही अंश है जिसके कारण यह सारा का सारा संसार है.

हम मानव चार अवस्थाओं से लगतार गुजरते है. जागृत अवस्था, स्वप्न अवस्था, सुषुप्ति और तुरिया. जैसे सब कुछ इन आँखों से अलग अलग दिखाई दे रहा है वास्तव में ऐसा है नहीं. वास्तव में सब कुछ ही उर्जा से बना हुआ है. वही उर्जा ही ईश्वर है. लेकिन क्यूंकि हम अपने ही मन के कारण अलगाव की भाषा समझते है. इसलिए हमें अलगाव दिखता है.

जागृत अवस्था ब्रह्मा है

मानव देह के चार स्थान नाभि, हृदय, कंठ और मस्तक. इन चारो स्थानों को एक ही ब्रह्मा प्रकाशित कर रहा है. जागृत अवस्था ब्रह्मा है. स्वपन अवस्था विष्णु रूप है, सुषुप्ति अवस्था शिव है और तुरिया अक्षर रूप है.

शिव सदा शिव है. वो कंठ में है वो ही हमारी सुषुप्ति अवस्था है. जागृत अवस्था को हम जानते है और अनुभव भी करते है, स्वप्न अवस्था को भी हम जानते है और अनुभव भी करते है. परन्तु सुषुप्ति को हम केवल जानते है वो सही तरीके से हमारे अनुभव में नहीं है.

जो स्वप्न के बाद गहरी नींद की अवस्था है वो सुषुप्ति है. हमें पता चलता है कि हमें गहरी नींद आई परन्तु जैसा जागृत और स्वप्न अवस्था में हमें अनुभव होता है वैसा अनुभव नहीं होता.

शिव सुषुप्ति है

शिव सुषुप्ति है. शिव तक जाना पड़ता है. शिव तक पहुचना पड़ता है. शिव ऐसे नहीं मिलते. शिव को जानना ही उस ईश्वर को जानना है. शिव का स्थान कंठ में बताया है. कंठ में ही विशुद्धि चक्र है. विशुद्धि चक्र जब जागृत होता है तो ज्ञान अपने आप बहने लगता है. ज्ञान अपने आप चलने लगता है. ज्ञान ही शिव है. शिव आयेगें तो ज्ञान बहने लगेगा. यही ज्ञान ही विमान बन कर उस परम शक्ति तक पंहुचा देगा. शिव के पीछे के विज्ञानं को समझ कर ही शिव को जाना जा सकता है. वो कंठ में है और उनका रंग नीला है. विशुद्धि चक्र का रंग भी नीला है. यह वही रंग है जो ध्यान में हर साधक को दिखाई देता है.

नीली रौशनी हमेशा रहस्यमयी रही है. शिव भी रहस्यमयी है. भोले भी है. क्यूंकि शुद्ध है अति शुद्ध है इसलिए भोले भी है. शिव को ध्यान से पाया जा सकता है. शिव तक ध्यान से पंहुचा जा सकता है. एक बार उन तक पहुच गए तो आगे का रास्ता शिव ही तय करवा देंगे.

शिव सदा शिव है

शिव सदा शिव है. इसका भी एक मतलब है. पहली दो अवस्थाएं बन रही है और देह का और मन का अनुभव है. तीसरी अवस्था बन नहीं रही है बल्कि बनाने वाली उर्जा का एक रूप है. पहली दो अवस्थाये नित्य नहीं है परन्तु तीसरी अवस्था नित्य है. इसलिए सदा शिव है.

याद रखिये शिव तक पहुचना पड़ता है.

Categories: Meditation

Tags: ,

कौन होते है परमहंस संत ? – क्या परमहंस होना एक उपाधि है?

1 Comment
Yoga My Life Courses

परमहंस संत

आपने यह शब्द अपने जीवन में बहुत बार सुना होगा. खासतौर पर भारत में विभिन्न समुदायों के गुरुओं के नाम के आगे “परमहंस” शब्द का प्रयोग किया जाता है. क्या आपने कभी सोचा है कि कौन होते है परमहंस संत? क्या परमहंस होना एक उपाधि है. अगर उपाधि है तो कौन देता है यह उपाधि?

इस बात का उल्लेख भी हमारे ग्रंथो में दिया गया है. विशेषतौर पर हमारे मूल ग्रन्थ उपनिषदों में. सबसे पहली बात तो परमहंस संत विरले ही होते है – ऐसा ब्रह्माबिंदु उपनिषद में लिखा हुआ है. जब महामुनि नारद ब्रह्मा से परमहंस संतो के बारे के पूछते है – कि परमहंस संत कैसे होते है?

ब्रह्मा और महर्षि नारद

ब्रह्मा उतर देते है कि – परमहंस सन्यासियों का मार्ग इस लोक में अंत्यंत दुर्लभ है. ऐसे परमहंस बहुत नहीं है. एकाद ही है. एकाद ही परमहंस सन्यासी होता है.

फिर नारद पूछते है – परमहंस सन्यासी कैसे इस संसार में विचरता है?

ब्रह्मा उतर देते है – वो परमहंस सन्यासी सदा ही कूटस्थ भाव में स्थित होता है. इस परमहंस सन्यासी को वेद पुरुष भी कहते है. ऐसे  परमहंस सन्यासी के चित में ईश्वर के सिवा और कुछ भी नहीं होता. इसलिए स्वयं ईश्वर परमहंस योगी के चित में विराजमान रहते है.

यही वजह थी कि भारत में ऐसे योगियों ने तरह तरह के चमत्कार भी किये. लेकिन परमहंस युहीं कोई सन्यासी किसी के कहने से नहीं हो जाता. उसके लिए सबसे पहले अपने मन से लड़ते हुए अपने मन के पार जाना होता है और उसके बाद उस मन को छोड़ना होता है.

कर्मकांड और सन्यासी

वो सन्यासी तब किसी भी कर्मकांड में न तो विश्वास रखता है और न ही किसी कर्मकांड का हिस्सा बनता है. परमहंस सन्यासी का न तो कोई मित्र होता है और न ही कोई शत्रु. सिकंदर बादशाह की भी मुलाकात एक ऐसे ही सन्यासी से हुई थी. उस सन्यासी में सिकंदर के व्यक्तित्व को हिला कर रख दिया था. सिकंदर की मौजूदगी से ही लोग खौफ में आ जाते थे. लेकिन उस सन्यासी के तो आसपास दूर दूर तक डर का नामोनिशान नहीं था. सिकंदर हैरान था उस सन्यासी के आचरण से. परन्तु यह बात सिकंदर के समझ आने वाली नहीं थी.

परमहंस होना एक यात्रा है

परमहंस होना एक यात्रा है एक मानव के ईश्वर तक पह्चुने की. परमहंस होने से पहले सन्यासी होना पड़ता है. सन्यासी होने से पहले कर्मयोगी होना होता है. यात्रा का रास्ता कर्मयोग से ही शुरू होता है. ध्यान साधना और फिर विभिन्न प्रकार की समाधियों के पार जाता हुआ योगी परमहंस होने तक पहुचता है. उस महापुरुष का चित हरदम मुक्त रहता है. यानि सामान्य मनुष्य के चित की तरह उस सन्यासी का मन उड़ता नहीं है. परमहंस सन्यासी के मन में हरदम विचार नहीं उठते है. उनका मन शांत पानी की तरह होता है. अगर कोई भाव रहता है तो केवल और केवल ईश्वर का ही भाव रहता है. एकहि भाव. न कोई दण्ड (एक प्रकार की लकड़ी) न कोई कमण्डल न कोई विशेष वेश. क्यूंकि मन होता ही नहीं तो कोई भी विषयवस्तु उनके व्यक्तित्व का हिस्सा हो ही नहीं सकती.

वह सन्यासी छ: प्रकार के कर्मो से रहित होता है. वह सन्यासी सर्दी, गर्मी, सुख, दुःख, मान अरु अपमान इन छ: कर्मो से दूर होता है. उस सन्यासी का शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध  पांच तन्मात्राओं से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता.

 

Categories: Meditation

Tags:

क्या होता है जब कोई ऋषि समाधि में जाता है

1 Comment
Yoga My Life

समाधि शब्द

समाधि शब्द आपने कई बार सुना होगा. हम सुनते आये है प्राचीन ऋषि समाधि अवस्था में चले जाते थे. आज भी उच्च कोटि के साधक समाधिस्थ हो जाते है. आज हम आसान भाषा में यह समझेगे कि यह समाधि वास्तव में है क्या?

ध्यान एक घटना है

समाधि ध्यान के बाद की अवस्था है और ध्यान एक घटना है. जोकि एक तरह से मन के हटने के बाद घटित होती है. ध्यान से पहले प्रत्याहार होता है. प्रत्याहार को हमें समझना होगा. हम लगातार अपनी चेतना को अपनी पांच इन्दिर्यों के माध्यम से खोते चले जा रहे है. हमारा माइंड ही एक तरह का पदार्थ है जो हमारी चेतना को संसार में उलझाये रखने में सक्षम है. हमारा मन हमें हमारी चेतना को नहीं समझने देता. हमारा मन हमें कुछ क्षणों के लिए भी नहीं ठहरने देता जिस से कि हम खुद के होने को समझ सके. यानि हम चेतन और अचेतन में फर्क समझ सके.

इसलिए खुद को समझने की प्रक्रिया में अगर कोई हमारा शत्रु है तो वो हमारा मन ही है. इसलिए साधना में हमारी पहली लड़ाई हमारे खुद के मन से ही होती है. ध्यान से पहले हमें अपने मन को अपनी पाच इन्दिर्यों से अलग करना होता है. मन को अपनी इन्द्रियों से हटाना ही प्रत्याहार है.

मन को शुद्ध करना होता है

लेकिन इसके लिए सबसे पहले हमें अपने मन को शुद्ध करना होता है. मन को शुद्ध करने का मतलब होता है कि मन को कामना रहित करना. मन तब तक अशुद्ध होता है जब तक उसमे कामनाएं होती है. शुद्ध मन से ही ध्यान की और बढ़ा जा सकता है. अशुद्ध मन हमें हमेशा संसार को और ही बनाये रखता है. अगर हमारी सोच केवल संसार है तो समझ लीजिये कि हमारा मन अशुद्ध है.

समाधि में मन नहीं होता

समाधि में मन नहीं होता. इसलिए सही मायने में हम समाधि को शब्दों में बयां नहीं कर सकते. समाधि अपने ही मन के परे की एक स्थिति है.

प्रत्याहार के बाद एक ही विचार की धारणा की जाती है. एक ही विचार जब लम्बे समय तक चलता है तो एक समय ऐसा आता है जब ध्यान घटता है. ध्यान में समय का आभास भी नहीं रहता. कब ध्यान करने बैठे और कब तक वो ध्यान चला इस बात का पता ही नहीं चल पाता. ध्यान जब लम्बे समय तक घटने लगता है तो साधक समाधि में जाने लगता है.

समाधि की भी कई अवस्थाएं होती है

समाधि की भी कई अवस्थाएं होती है. समाधि में शुरू के मन से परे के आभास होते है. परन्तु वो आभास साधक मन से जुड़ कर ही सोचने लगता है. फिर साधक खुद के होने के अनुभव को पाने लगता है. जब खुद केहोने के अनुभव को पा लेता है तो उसे खुद को कैसे छोड़ना है यह बात समझ आ जाती है.

इस तरह से एक आवरण से दुसरे आवरण को तोड़ता हुआ साधक परम विराम पर पंहुच जाता है जोकि समाधि की अंतिम अवस्था है. जिसे हम निर्वाण कह सकते है, मुक्ति कह सकते है.

Categories: Meditation

Tags: ,

साधना में भगवान् को कैसे महसूस करे

No Comments
Yoga My Life

भगवान् कोई व्यक्ति नहीं है

भगवान् कोई व्यक्ति नहीं है जिन्हें हम देख कर या उनकी कोई तस्वीर देख कर उन्हें याद कर सके. तो फिर साधना में, ध्यान में कैसे ईश्वर की अनुभूति करे. यह एक बड़ी समस्या है. एक तरह से यह एक रिसर्च का विषय है. विज्ञानं में जब किसी चीज की खोज करनी होती है. उसे सबसे पहले एक अज्ञान वैल्यू मन जाता है. उसके बाद उसे बाद उसे Mathematically prove किया जाता है.

वेदान्त

वेदान्त भी हमें इसी तरह से करने के लिए कहता है कि पहले ईश्वर को कुछ मान लो. ईश्वर के असली रूप का चिंतन नहीं किया जा सकता. सच्चाई यह है कि हम अपने मन से “उसे” न तो सोच सकते है और न ही अनुभव कर सकते है. हमारा मन pictures की भाषा समझता है. इसलिए हमें अपने मन के अनुसार ही चलना होगा. हमें इस बात को समझना होगा कि हम मन रूपी आवरण के अंदर है. क्यूंकि हम अपने ही मन के अंदर है और हमारा मन प्रकृति के अंदर है और प्रकृति ईश्वर के अंदर है इसलिए हमें शुरुआत में अपने ही मन को पार करने के लिए अपने मन को साधना होगा.

उपनिषद हमारी इस मामले में बहुत मदद करते है – ब्रह्माबिंदु उपनिषद हमें सीधेतौर पर हमें बताता है कि – प्रथम स्वर में मन को लगा कर फिर अस्वर की धारणा करनी चाहिए. इसका आसान शब्दों में मतलब है कि पहले हम सगुण रूप को धारण करते हुए फिर हमें निर्गुण की धरना करनी चाहिए.

एक शब्द यहाँ आया है – धारणा

एक शब्द यहाँ आया है – धारणा. इसे समझने के लिए पतंजलि के अष्टांग योग को समझना होगा. क्यूंकि उसके बिना हम न तो ध्यान को समझ पायेगे और न ही साधना को.

पतंजलि योग सूत्र के 8 अंग

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणयाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि

यहाँ धारणा आती है प्रत्याहार के बाद. प्रत्याहार में हम अपने मन को अपनी इन्द्रियों से निकल चुके होते है. उसके बाद एक ही विचार पर मन को टिकाया जाता है. केवल और केवल एक ही विचार को ही लम्बे समय तक चिंतन किया जाता है.

 

Yoga My Life Classes

यह एक खास नियम है कि एक ही विचार मन में लम्बे समय तक रखा जाये तो मन एक समय बाद निरुस्त हो जाता है और यह वो समय होता है जब हम ध्यान में प्रविष्ट होते है. सब कुछ टेक्निकल है.

लेकिन शुरुआत जैसे कि मने बताया कि सगुण से ही होनी चाहिए. लेकिन सगुण में भी अटक नहीं जाना है. क्यूंकि सगुण उपासना एक तकनीक है उसे प्रयोग करके आगे का रास्ता तय करना होता है.

आप अपने धर्मानुसार किसी देवता या ईश्वर के किसी भी रूप को जेहन के रखते हुए ध्यान कर सकते है. यह एक सगुण उपासना होगी.

 

Categories: Meditation

Tags: ,

Maharish Aurobindo – महर्षि अरविन्द

No Comments
Maharishi Aurobindo

श्री अरविंद

आज World Yoga Day विश्व योग दिवस पर एक महान दार्शनिक, एक महान शिक्षाविद, एक महान लेखक को याद करके मन में प्रसन्नता हो रही है. मैं विश्व के महान दार्शनिक श्री अरविंद को याद करते हुए आप सबके साथ शत शत नमन करता हूँ.

इस तरह की महान शक्ख्सियत मन इन्द्रियों से परे जाकर, भुत, भविष्य से परे जाकर चेतना के उस स्तर पर जाकर लीन हो जाती है जिसे जल्दी से हमारा मन और हमारी बुद्धि समझ नही पाती. श्री अरविंद तब भी थे, अब भी है और हमेशा ही रहेगे.

दर्शन शाश्त्र

दर्शन शाश्त्र भी कमाल का शब्द है भारतीय फिलोसोफी  में, फिलोसोफी जोकि ग्रीक भाषा का एक शब्द है और जिसका मतलब होता है – love of wisdom. परन्तु दुनियां की सबसे पुरानी फिलोसोफी जोकि भारत की है यहाँ दर्शन का मतलब है – “वो जैसा मैंने देखा”

हमारे अध्यात्मिक वैज्ञानिको ने, हमारे ऋषियों में अतिन्द्रिये अवस्था में जा कर जो देखा वो हमारा दर्शन हुआ, हमारा दर्शन love of wisdom नहीं है. हमारा दर्शन अपने आप जागृत होने वाली इस विश्व के पीछे की हकीकत है.

शिक्षा का उदेश्य कैसा होना चाहिए

मैं फिर से अपनी बात पर आता हूँ जो मेरा आज का विषय है – जोकि खासतौर पर बच्चो पर है और  श्री अरविंद ने जो शिक्षा को लेकर एक कहा कि शिक्षा का उदेश्य कैसा होना चाहिए और शिक्षा किस तरह से देनी चाहिए.

आज हम और हमारे बच्चे एक ऐसी दौड़ में पहुच गए है जहाँ हमें अपनी नैतिकता पीछे छूटती सी नज़र आ रही है. मोबाइल और टेक्नोलॉजी की दौड़ में हम मानवता को पीछे छोड़ते जा रहे है. ऐसे में हम हमारी विरासत को भी भूलते चले जा रहे है. खासतौर पर हमारे बच्चे जो बचपन से ही तनाव का शिकार हो रहे है.

आज के बच्चों की कुछ इस तरह की समस्याएं है:-

  • मोबाइल पर ज्यादा से ज्यादा Involve रहना.
  • पढाई पर कम ध्यान देना.
  • यादाश्त कमज़ोर है, कुछ भी यद् नहीं रहता
  • बहुत से बच्चे गुमसुम रहते है.
  • बहुत से बच्चो को स्टेज पर बोलने का डर होता है.
  • बहुत से बच्चे अपने माता पिता का कहना नहीं मानते है.
  • खाने की आदत बिगड़ चुकी है.
  • पढाई में मन नहीं लगता है. 
  • बुद्धि का स्तर कम होना
  • Over Confidence
  • Western World की तरफ ज्यादा झुकाव है.

आज का एजुकेशन सिस्टम हमें ज्ञान तो दे रहा है परन्तु हमारे बच्चों का मानसिक विकास करने के लिए यह एजुकेशन सिस्टम सक्षम नहीं है. आज स्कूल के PTM (Parents Teacher Meet) में हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि “आपका बच्चा पढाई में ठीक नहीं है” परन्तु स्कूल के पास उस बच्चे की विजडम (बुद्धि) को बढ़ाने का कोई तरीका नहीं है.

आज का एजुकेशन सिस्टम एक तरह का मैकेनिकल सिस्टम है जहाँ प्रश्न भी सिस्टम के है और उतर भी सिस्टम के है. जहाँ पर व्यक्ति एक रोबर्ट की तरह ज्ञान अर्जित करता है जिसमे उसके व्यक्तित्व का और उसकी बुद्धि के विकास की संभावनाएं नाम मात्र होती है.

जीवन में आने वाली आपदाओं में, जीवन के नकरात्मक क्षणों में किस तरह शांत रहते हुए हम अपनी समस्याओं की सुलझाएं यह सब आज का एजुकेशन सिस्टम नहीं सिखलाता.

हमारे महान अध्यात्मिक वैज्ञानिको ने, हमारे ऋषियों ने; हमारे मन पर बहुत काम किया है. मन को कैसे काबू किया जाये, मन को कैसे शक्तिशाली बनाया जाये, बुद्धि को कैसे विकसित किया जाये इस पर बहुत काम किया है. हमारी प्राचीन धरोहर; हमारे ग्रन्थ, हमारा वेदान्त ऐसी शक्तिशाली तकनीकों से भरा पड़ा है जिनका अगर सही से प्रयोग किया जाये तो हमारा Mind विकसित हो सकती है, हमारी बुद्धि विकसित हो सकती है.

स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद जैसी विश्वविख्यात शक्ख्सियतों ने हमारी प्राचीन संस्कृति का लोहा सारे संसार को उस वक़्त मनवाया जब हमारा देश गुलाम था. महर्षि अरविंद ने शिक्षा की ऐसी प्रणाली को पेश किया जिसे व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों को प्रकृति तौर पर विकसित किया जा सकता था और किया जा सकता है. आज हमें और हमारे समाज को उस शिक्षा प्रणाली की फिर से जरुरत है.

यह भी सच है कि आज की इस शिक्षा प्रणाली को बदल नहीं जा सकता परन्तु हम अपनी प्राचीन धरोहर का प्रयोग तो कर सकते है इस शिक्षा के प्रणाली के साथ साथ.

श्री अरविंद ने बताया कि – ध्यान से, आध्यात्मिकता के हमारे भौतिक जीवन पर प्रयोग से हम चेतना के उस आयाम तक पहुच सकते है जहा विजडम अपने आप ही पैदा होती है, अपने आप ही विकसित होती है. याद रखिये किताबो से ज्ञान को बढाया जा सकता है विजडम को नहीं, आज का शिक्षा तंत्र ज्ञान को जरुर बढ़ा रहा है परन्तु विवेक जागृत करने में इसके पास कोई तरीका नहीं है.

योग कैसे किसी व्यक्ति की मेमोरी बढ़ाने में कारगार सिद्ध होगा?

अब मैं आपको यह बताने जा रहा हूँ की योग कैसे किसी व्यक्ति की मेमोरी बढ़ाने में कारगार सिद्ध होगा? मनोविज्ञान के अनुसार हमारे मन के 3 प्रकार है: –

चेतन मन (Conscious Mind)

अवचेतन मन (Subconscious Mind)

अधिचेतन मन (Unconscious Mind)

चेतन मन (Conscious Mind) में हम एक समय के कुछ विचार रख सकते है. यानि अब तक जो जो हमने सीखा है वो सब एक साथ हम अपने चेतन मन में नहीं रख सकते.

अवचेतन मन (Subconscious Mind) हर वक़्त सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा है. सब कुछ जो जो भी आप कर रहे है, जो कुछ भी आप देख रहे है वो सब हर वक़्त दर्ज हो रहा है आपके अवचेतन मन में. और इस अवचेतन अगर ठीक से समझ कर इसका प्रयोग करना यदि आ जाये तो हम बड़ी से बड़ी किताब कुछ मिनटों में पढ़ सकते है. स्वामी विवेदानंद इस बात के उदहारण है. उन्होंने अपने जीवन काल में ऐसा किया. श्री अरविंदो इस बात के उदहारण है उन्होंने अपने जीवन काल में ऐसा ही किया.

Unconscious Mind हमारे शरीर में फीलिंग्स और उन बातो पर कण्ट्रोल रखता है जिन पर सीधे तौर पर हमारा कण्ट्रोल नहीं है.

अब यदि हम चेतन मन और अवचेतन मन का सही तालमेल बना ले तो पढाई हमारे लिए एक खेल के सामान हो जाएगी. थोड़ी देर पढने से बहुत कुछ समझ भी आ जायेगा और याद भी रहेगा. ऐसा हो सकता है, ऐसा हुआ भी है, आप भी ऐसा कर सकते है.

लेकिन इसके लिए योग को अपनाना होगा. योग का मतलब केवल कुछ योग आसन नहीं है. योग भारतीय दर्शन का एक स्कूल है. Yoga School of Philosophy by Maharishi Patanjali. योग की बहुत सी विधियों का प्रयोग हम विद्यार्थी जीवन में कर सकते है जिनसे न केवल हमारी मेमोरी शार्प होती है बल्कि हमारे व्यक्तित्व का भी विकास होता है.

कुछ ऐसी विधियाँ है जिनका प्रयोग स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद ने अपने जीवनकाल में किया और उन्होंने हमें वो विधियाँ अपनाने के लिए भी प्रेरित किया. यह सब की सब विधियाँ मन पर काम करती है. मन को स्ट्रोंग करती है, बुद्धि को स्ट्रोंग करती है, व्यक्ति के अंदर व्यक्तित्व को विकसित करती है जिससे आत्मविश्वास खुद-ब-खुद पैदा होता है. क्यूंकि आत्मविश्वास जैसी आतंरिक शक्ति कभी भी बहिय ट्रेनिंग से उत्पन्न नहीं की जा सकती. इसे मन की विशेष अवस्था में पहुच कर ही Cultivate करना पड़ता है.

अंत में मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि आज समय आ गया है कि हम योग को अध्यात्म को अपने जीवन में लाकर आज के तनावपूर्ण जीवन को आसानी से तनाव रहित होकर जी सकते है और अपने अंदर अध्यात्मिक शक्तियों का विकास भी कर सकते है.

Categories: World Personalties

Tags:

Sponsors and Support