आवाजों की भाषा – Language of Sounds

आवाजों की भाषा

मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे

मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं  (असग़र गोंडवी)

हम आवाजो का प्रयोग करते है अपनीबातों को समझाने के लिए. हम हर आवाज़ को एक मतलब देते है. लेकिनआवाजों की अपनी एक भाषा भी होती है जिस से हम आमतौर पर अनभिज्ञ रहते है. मज़े की बात आपको बताता हूँ कि जो आप और हमने विभिन्न साउंड्स को अर्थ दे रखे है वो उनके वास्तविक अर्थ नहीं है. हरसाउंड कुछ न कुछ इफ़ेक्ट पैदा करती है हमारे जेहन में.

यादें तन्हाई से बातें करती हैं

सन्नाटा आवाज़ बदलता रहता है– (ज़का सिद्दीक़ी)

इस बात को हम संगीत से समझ सकते है. भारत में बड़े बड़े संगीत घराने है. संगीत का चलन भारत में राजा महाराजाओं के काल से चला आ रहा है. कुछ रागों के बारे में बताता हूँ.

मल्हार राग/ मेघ मल्हार, हिंदुस्तानी व कर्नाटिक संगीत में पाया जाता है। मल्हार का मतलब बारिश या वर्षा है और माना जाता है कि मल्हार राग के गानों को गाने से वर्षा होता है। मल्हार राग को कर्नाटिक शैली में मधायामावती बुलाया जाता है। तानसेन और मीरा मल्हार राग में गाने गाने के लिए मशहूर थे। माना जाता है के तानसेन के ‘मियाँ के मल्हार’ गाने से सुखा ग्रस्त प्रदेश में भी बारिश होती थी.

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देखा आपने कैसे साउंड के एक खास तरीके ने इस प्रकृति को वर्षा करने को मजबूर कर दिया. एक तरह से इनपुट है साउंड्स. अगर यह विद्या समझ आ जाये तो जीवन में कुछ भी किया जा सकता है.

बादशाह अकबर की जिद पर तानसेन ने दीपक राग गया तो न सिर्फ दीपक अपने आप जल उठे, बल्कि आसपास का माहौल भी तपने लगा। इस राग के असर से खुद तानसेन का शरीर भी भयानक रूप से गर्म होने लगा। उनकी बेटियों ने राग मेघ मल्हार गाकर उस वक्त उनके जीवन की रक्षा की.

इतना कुछ छिपा है आवाजोंमें. बड़े ही कमाल की बाते है यह. मैं बता रहा था कि हर बोले गए शब्द की अपनी एक भाषा है. पतंजलि योग सूत्र में भी इसके बारे में बताया गया है. पतंजलि योग सूत्र में तो कमाल की बात कही गयी है. एक शब्द आता है पतंजलि योग सूत्र में ‘संयम’. जबध्यान, धारणा और समाधि को किसी भी आवाज़ पर लगाया जाये तो उस आवाज़ में छिपा अर्थ अपने आप ही समझ आने लगता है. यहाँ तक कि पक्षियों की आवाज़े, जानवरों की आवाज़े, बदल क्या कह रहे है उसका अर्थ भी समझ आने लगता है. क्यूंकिआवाजों की अपनी ही एक भाषा होती है.

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यादों के द्वार पर रह रह के देता है कोई दस्तक

बराबर ज़िंदगी आवाज़ पर आवाज़ देती है

(नज़ीर बनारसी)

एक अलग ही विज्ञानं है यह

एक अलग ही विज्ञानं है यह. आवाजो का विज्ञानं. सीखा जा सकता है. अभ्यास से, अभ्यास से ही आएगा. मुश्किल नहीं है. हर आवाज़ को ध्यान से सुनने की आदत डाल लीजिये बस . थोड़ी देर पक्षियों की आवाजो को सुनिए.  किसी ऐसी जगह पर जाईये जहाँ बहुतसारेपक्षी हो. थोडा वक़्त उनके साथ गुजरियें. कुछ क्षण के लिए अपनेमनको चुप करवा कर पक्षियों की आवाज़ों पर ध्यान दीजिये. समझने की कौशिश कीजिये. केवल ऐसा करने से ही आनंद आएगा. मन को बहुत अच्छा लगेगा. यह भी एक तरह का ध्यान है. जबआपका घर पर ध्यान नहीं लग रहा हो तो यह ध्यान आपके काम आएगा. औरअगर इसका अभ्यास आगे बढ़ता चल गया तो इस विद्या को भी सीख जायेगे.

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मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी

मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी. नका जन्म फारस देश के प्रसिद्ध नगर बल्ख़ में सन् 1207 में हुआ था। कमाल की बात यह है कि फारसीके मशहूर अध्यात्मिकशायरऔर सूफी के दिग्गज भी व्ही बात कह रहे है जो महर्षि पतंजलि ने कही है और भारतीय दर्शन शाश्त्र कहता है. हालाँकिमौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी काहिंदुस्तान की धरती से कोई खास वास्ता नहीं है क्यूंकि उनके जीवन का ज्यादातर हिस्सा युवावस्था में सीरिया के दमिश्क, एलेप्पो औरतुर्की, अफगानिस्तान में बीता.

अक्सर इनकी रचनाये पढ़ते पढ़ते मुझे लगता है कि मैं भगवद्गीता का कोई अध्याय पढ़ रहा हूँ, कभी लगता कि मैं पतंजलि योग सूत्र पढ़ रहा हूँ.  उनकी लिखी एक रचना का एक भाग पढ़ कर सुनाता हूँ.

यक-नफ़से ख़मोश कुन दर ख़मुशी ख़रोश कुन

वक़्त-ए-सुख़न तू ख़ामुशी दर ख़मुशी तू नातिक़ी (रूमी)

एक क्षण के लिए चुप हो जाओ! और मौन की अवस्था में कलरव करो! जब तुम बोलते हो तो कुछ नहीं कह पाते पर जब चुप रहते हो तब तुम उत्तम वक्ता होते हो।

फिर वही बात

“अजीब शौर मचाने लगे है सन्नाटे,

ये किस तरह की खामौशी हर इक सदा में है”

(आसीम वास्ती)

 

 

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