कौन होता है साधू और कौन होता है सन्यासी ?

सन्यासी, साधू, बाबा यह कौन होते है.

सन्यासी, साधू, बाबा यह कौन होते है. हम अक्सर बाजारों में, धार्मिक स्थानों में साधू बाबाओं को देखते है और हम उन्हें सन्यासी या फिर साधू कहने लगते है. लेकिन वास्तव में सन्यासी क्या होता है यह जानना बहुत ही जरुरी है. क्यूंकि जो दिखता है वो होता नहीं है और जो जैसा होता है वो वैसा दिखता भी नहीं है.

हम अक्सर पहनावा देख कर ही तय कर लेते है कि फलां व्यक्ति साधू है या फिर सन्यासी है. जो हमारे आगे एक खास पहनावे में आ गया हमने उसे साधू समझ लिया. कोई शिखा रख कर साधू बन रहा है तो कोई लंगोटी बाँध कर. कोई नग्न होकर साधू बन रहा है तो कोई लबादा औड कर.

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ऐसे में समझ नहीं आता कि कौन साधू है और कौन नहीं? लेकिन हमें यह बात मालूम अवश्य होनी चाहिए कि कि कौन साधू होता है और कौन नहीं.

संन्यास कर्मयोग के बाद की प्रक्रिया है

संन्यास कर्मयोग के बाद की प्रक्रिया है. पहले कर्मयोग आता है और फिर संन्यास. सन्यासी वास्तव में सांख्ययोगी होता है. सन्यासी के लिए ईश्वर ही सब कुछ होता है. उसके जीवन का लक्ष्य प्रकृति की सेवा होता है.

पहनावा केवल उसको खुद को यह याद दिलाने के लिए होता है कि कभी उसका मन कही भागने की थोड़ी भी कौशिश करे तो उसे याद आ जाये कि वो एक सन्यासी है. वो सांसारिक वस्तुओं के मोह से ऊपर उठा हुआ होता है. उसे कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं लुभाती.

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न उसका कोई मित्र होता है और नहीं कोई शत्रु

न उसका कोई मित्र होता है और नहीं कोई शत्रु. न उसे मृत्यु का. उसे न कोई दुख होता है और न ही उसे कोई सुख लगता है. वो कभी कुछ मांगेगा नहीं क्यूंकि उसे सब कुछ अपने आप ही प्रकृति देगी ही.

जब हम अध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ते है और जब संसार के सुख दुःख हमें लुभाते नहीं है. उस समय हमारे जीवन का लक्षण सांसारिक सुख न होकर केवल और केवल परमात्मा हो जाता है तब हम अपने लिए काम नहीं करते बल्कि इस प्रकृति के लिए कार्य करने लगते है. तब हम कर्म तो करते है परन्तु बिना आसक्ति के.

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ऐसा करने पर प्रकृति हमारा ख्याल करने लगती है. क्यूंकि उस समय हम सीधे तौर पर प्रकृति से कुछ डिमांड नहीं कर रहे होते. परन्तु प्रकृति का कार्य ही है फल देना. इसलिए हमारे न चाहते हुए भी हमें यह प्रकृति सब कुछ अपने आप ही देने लगती है. साधू वो भी बाँटने लगता है.

इसलिए साधू कभी भी डिमांड नहीं करता. उसके चेहरे पर हमेशा ख़ुशी होगी. ज्ञान उसके अंदर से बहेगा. क्यूंकि ज्ञान का दरिया होता है साधू. साधू की आँखों में होगा तेज़, दमकते है ऐसे चेहरे अंगारे की तरह.

साधू के आसपास की उर्जा पवित्र होती है. जिसका आभास उसके पास जाने से अपने आप ही होने लगता है.

 

 

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