What is Vipasana? विपसना क्या है?

विपसना

श्वास है तो जीवन है श्वास नहीं तो जीवन नहीं. आपके और आपके शरीर के बीच एक connectivity है वो है श्वास. जिस दिन यह कनेक्टिविटी नहीं होगी तो आप आप नहीं होगे और आपका शरीर भी शरीर नहीं मृत कहलायेगा.

लेकिन श्वास लेना हमारा कार्य नहीं है, श्वास तो हमें दी जा रही है, अज्ञात के द्वारा. क्योंकि जब हम सो जाते है तो भी श्वास तो चलती है. बस इसी बात को थोडा गहराई से समझना है कि श्वास चल रही है, अपने आप ही चल रही है. बंद होगी तो अज्ञात के कहने से ही होगी.

विज्ञानं भैरव तंत्र

इस प्रक्रिया में हमें सांसो पर ध्यान लगाना है. श्वासों पर कार्य करना योग नहीं है तंत्र है, विज्ञानं भैरव तंत्र,  योग में श्वासों के द्वारा प्राण उर्जा पर काम किया जाता है. पर यहाँ कुछ और ही बात है.

इसलिए ध्यान साँस की व्यवस्था पर नहीं लगाना बस उसे देखना भर है. पर सूक्ष्म दृष्टि चाहिए,  आसानी से बात बनेगी नहीं. लगता है कि बिलकुल आसान है, पर थोडा मुश्किल है इसलिए अभ्यास जरुरी है. सांसे देने वाला आस पास ही है और जहा भी जाते है वही है, हमेशा साथ है.

पैनी दृष्टी चाहिए

पैनी दृष्टी चाहिए, सूक्ष्म दृष्टि चाहिए, सूक्ष्मता आएगी अभ्यास के साथ ही आएगी. एक बार् बात पकड़ में आ गयी तो रास्ता आसान हो जायेगा.

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सांस जैसी है वैसी ही देखनी है, उसे लेने की कोई भी कौशिश नहीं करनी है. सारी की सारी कौशिश उसे देखने की करनी है.

देखना क्यां है

साँस को देखना है, बस आती जाती हुई साँस को देखना है.

किसी भी आसन में बैठ जाये जो आपके लिए सुखद हो, रीढ़ की हड्डी सीधी हो, आँखों को हलके से बंद ही कर ले तो ज्यादा अच्छा है.

भस्त्रिका प्राणायाम

शुरुआत भस्त्रिका प्राणायाम से करेगे. मैं आपको फिर याद दिला दू कि प्राणयाम से हम शुरुआत अवश्य कर रहे है पर हमने इस ध्यान में सांसो को साधना नहीं है बल्कि सांसो को देखना मात्र है.

भस्त्रिका प्राणायाम जैसे ही समाप्त होगा तो कुछ क्षण रुकने के बाद सांस को बाहर निकाल देना है, फिर आने वाली सांसो पर ध्यान गढ़ा देना है. एक भी साँस को बच कर निकलने नहीं देना, एक भी साँस आपकी चेतना से बच कर नहीं जानी चाहिए. सांस लेनी नहीं है, बस देखनी है. सांस तो वैसे भी आपने आप आ रही है और जा भी रही है.

इस अभ्यास में सबसे बड़ी दिक्कत यही आती है कि हम साँस लेने में मशगूल हो जाते है और अपनी चेतना को खो देते है. ध्यान रहे की चेतन रहना है, जैसे ही साँस लेने में लग जाएगी उसी क्षण चेतना लुप्त हो जाएगी. पर हमें अवेयर रहना है साँस के प्रति.

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थोडा और गहराई से सोचते है

सांस बाहर से, अनजानी जगह से, अज्ञात से अन्दर आ रही है. आ रही है अज्ञात से देखना है, अन्दर गयी, देखना है, वापिस आने से पहले रुकी जरुर होगी, पकड़ना है इसी लम्हे को, इसी क्षण को, फिर बाहर आई देखना है, फिर वापिस अन्दर आएगी पर वापिस अन्दर मुड़ने से पहले रुकी जरुर होगी, फिर इस लम्हे को, इस क्षण को, इस वक़्त को पकड़ने की कौशिश करनी है अपने अवेयरनेस से, चेतना से, मन भागेगा अचानक भागेगा, तेज़ी से भागेगा, अपनी गति से भागेगा, पर कोई बात नहीं, उसे फिर से पकड़ कर वापिस लाना है साँसों पे, आती जाती हुई सांसो पे.

सजग रहना है. साँस के साथ अन्दर गए, रुके, वापिस मुड़े बाहर की ओर, सांस के साथ बाहर गए, रुके, फिर वापिस मुड़े अन्दर की ओर. पकड़ना है रुकने वाले क्षणों को सजगता से पकड़ना है. आप पकड़ लेंगे कोई मुश्किल नहीं है, अभ्यास मदद करता है.

सिद्धार्थ ने ऐसा ही किया था, पकड़ किया था उन क्षणों को कि कब बुद्ध हो गए मालूम ही नहीं चला, पर इसी तकनीक का प्रयोग करके ही बुद्ध हुए. इस लिए इसे बोद्ध विधि कहते है. बुद्ध इसी विधि के द्वारा निर्वाण को प्राप्त हुए थे. बौद्ध धर्म में इसे अनापानसति योग कहते है.

लेकिन दो सांसो के बीच के अंतराल की चिंता नहीं करनी है की वो कितना होगा, कम होगा या ज्यादा. मन का प्रयोग तो करना ही नहीं है. चिंता कर ली तो फेल हो जाओगे. ऐसा करते हुए जब भी कोई विचार पैदा होगा तो समझना की फेल हो रहे हो. यह वैचारिक साधना तो है ही नहीं, सोचना तो इसमें है ही नहीं, इसमें तो देखना है, विचार आया तो देखना खत्म; सोचना शुरू. इसलिए सोच इस साधना की दुश्मन है. अवेयर रहना है रुकने वाले क्षणों के प्रति, उस अंतराल के प्रति.

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इसको आसान बनाने के लिए दो भागो में भी बाँट सकते है कि पहले अन्दर जाती हुई सांस का अन्दर वाला अन्तराल पहचाने फिर बाहर वाले अंतराल पर काम करे.

एक थोडा और आसन तरीका भी है कि जब सांस अन्दर आएगी तो ठंडक देगी और बाहर जाएगी तो हलकी से गरमाहट देकर जाएगी. उस ठंडक और उस गरमाहट को महसूस करते हुए उन अंतरालो पर नज़र रखनी है.

एक आसान तरीका और भी है साँस जब अन्दर बाहर होती है तो पेट में भी मूवमेंट होती है. साँस अन्दर आती है तो पेट फूलता है और बाहर जाती है तो फिर से पानी जगह पर चला जाता है. शुरुआत में यह दो तरीके अजमा सकते है.

कुछ घटित होना शुरू होगा, बहुत कुछ घटित होना शुरू होगा. हजारो साधक इस विधि का प्रयोग करके लाभ ले चुके है.

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