भगवद्गीता – कृष्ण और अर्जुन
भगवद्गीता के अध्याय संख्या 7 के श्लोक संख्या 4 और 5 में श्री कृष्ण अर्जुन को इस खास विषय के बारे में समझा रहे है.
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च । अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् । जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान॥4-5॥
यहाँ देखिये कि पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश को जड़ पदार्थ कहा है जोकि दिखते भी जड़ पदार्थ ही है. लेकिन उसके बाद मन और बुद्धि को भी जड़ पदार्थ बताया है जोकि बिल्कुल भी जड़ पदार्थ प्रतीत नहीं होते. क्यूंकि हमें अपना मन तो हरदम चलता हुआ प्रतीत होता है. जबकि श्री कृष्ण यहाँ हमारे मन को ही जड़ बता रहे है.
अहंकार को भी जड़ बताया है
उसके बाद हमारे अहंकार को भी जड़ बताया है. यानि हमारा होना यानि कि जो मुझे महसूस हो रहा है कि “मैं हूँ” यह भी जड़ है. यह भी चेतन नहीं है.
फिर चेतन क्या है? भगवान श्री कृष्ण आगे कहते है – “यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान”
पृथ्वी जड़ है, जल जड़ है, अग्नि जड़ है, वायु जड़ है, आकाश जड़ है, मन जड़ है, बुद्धि जड़ है यहाँ तक की हमारा होना यानि हमारा अहंकार भी जड़ है. लेकिन जिस उर्जा के कारण यह सब चेतन प्रतीत हो रहे है वो उर्जा चेतन है.
क्वांटम फिजिक्स
थोड़ा आज के विज्ञानं के माध्यम से समझते है. क्वांटम फिजिक्स – क्वांटम विज्ञानं के अनुसार उर्जा के 2 रूप है. लेकिन उर्जा एक ही है. एक ही उर्जा के 2 रूप है. एक रूप स्थिर है वही दूसरा रूप गतिशील है.
एक ही उर्जा पदार्थ भी है और वही उर्जा उसी समय पदार्थ न होकर तरंग भी है. यही क्वांटम थ्योरी है. सांख्य और योग 2 अनादि एवं स्वतंत्र सत्ताएं मानते है. प्रकृति और पुरुष. प्रकृति जड़ है और पुरुष चेतन. एक ही समय में एक ही उर्जा प्रक्रति भी है और उसी समय में वही की वही उर्जा पुरुष भी है.
परम तत्व
वो उर्जा मुक्त तौर पर परम तत्व है. वो परम तत्व जो न विद्या है और न ही अविद्या, न प्रकाश है और नहीं ही अन्धकार, न आत्मा है और न ही अनात्मा, न भाव रूप है और न ही अभाव रूप है. न सगुण है और न ही निर्गुण है, न समीप है और न ही दूर है. वो अद्वितीय है उसकी कोई तुलना हो ही नहीं सकती. उसे कोई नाम दिया ही नहीं जा सकता. उसे सोचा ही नहीं जा सकता वो हमारी सोच से ही परे है.
उसकी बस बात की जा सकती है. वो जड़ से भी परे है और जिसे हम चेतन समझते है उस से भी परे है.