Author: Acharya Harish
अपने मन को कैसे शुद्ध करे – How to purify your mind
मन की अशुद्धि हमें न केवल जीवन से दूर लेकर जाती है बल्कि हमें हमारे समाज की मुख्य धारा से भी दूर ले जाता है. अशुद्ध मन के कारण हमारे जीवन में समस्याएं बढ़ने लगती है. हमारा मन हमारे कण्ट्रोल से बाहर होने लगता है. ऐसा होने से हम अपने ही मन के शिकार बन जाते है.
अशुद्ध मन बेहद ही खतरनाक है. आज कोई बड़ा अपराधी है तो उसकी शुरुआत कभी अशुद्ध मन से ही हुई थी. आज अगर कोई सफल नहीं है तो वो भी अपने अशुद्ध मन के कारण है. मन जब एक बार अशुद्ध होना शुरू होता और उस समय यदि हम सजग नहीं है तो फिर मन हमारे काबू से बाहर होने लगता है. हम बुरी आदतों के शिकार होने लगते है और फिर अपने ही मन के कुचक्र में फंसते चले जाते है.
आज समाज में अगर बुराई है तो इसका मतलब यह है कि अशुद्ध सोच के व्यक्ति समाज में अधिक है. आज किसी खास समाज में यदि असफलता है तो इसका मतलब यह है कि उस समाज में अशुद्ध मन के लोग अधिक है.
इसलिए सजग रहना होगा. अपने ही मन से सजग रहेना होगा. ऐसा नहीं कि आपका मन बुरा है. मन बुरा नहीं है. मन बहुत ही शक्तिशाली है. इसकी शक्ति का प्रयोग हर कोई नहीं कर सकता. अगर इसकी शक्ति का प्रयोग न करना आये तो यह परमाणु विस्फोट जैसा है. जिसका अगर कण्ट्रोल करना न आता हो तो विध्वंसक हो जाता है. यही हाल हमारे मन का है.
शुद्ध मन शांति लाता है और अशुद्ध मन अशांति लाता है. जीवन में जिस जिस ने सफलता की उच्चाईयों को छुआ उसका मन शुद्ध था.
अब बात यह है कि मन अगर अशुद्ध है तो उसे शुद्ध कैसे किया जाये. इसके लिए आपको सजग होना होगा. सजग होना होगा अपने ही विचारो के प्रति. कुछ भी करने से पहले थोड़ा सोचना होगा.
सोचने की, चिंतन करने की और मनन करने की एक आदत बनानी होगी. अपने मन में चलने वाली हर सोच पर विश्वास करना बंद करना होगा. हम अगर आँख मूंद कर अगर हम अपने ही मन पर भी विश्वास करने लगेगे तो जीवन अँधेरे की और बढ़ने लगेगा.
याद रखिये अशुद्ध मन कभी भी आपको खुश नहीं रख सकता. इसलिए थोड़ा सा अपने ही मन के बारे में भी सोचने की आदत डालनी होगी. हमारी समस्या यह है कि हम खुद को केवल शरीर मान कर ही जीते है. हमारे मन की ओर कभी हमारा ध्यान जाता ही नहीं. शरीर में अगर थोड़ी से भी समस्या आ जाये तो हम तुरंत सजग हो जाते है और मन की समस्या को हम समस्या मानते ही नहीं.
सजगता बेहद जरुरी है. रोजाना कुछ समय अकेले अवश्य बिताये. अकेले सैर करने जाये. अकेल बैठ कर कुछ लिखना शुरू करे. अकेले बैठ कर अपने बारे के सोचना शुरू करे. अकेले बैठ कर अपने आसपास के जीवन के बारे में सोचना शुरू करे.
एक प्राणयाम जिसे भ्रामरी प्राणयाम कहते है. वो रोजाना करे. रोजाना ध्यान करने की आदत डाल ले.
एक बात जो सबसे अहम् है कि नकारात्मक लोगो से उचित दुरी बना कर रखे. अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो अपनी संगति को बदलना होगा.
सबसे अहम् आपको अपने ही मन के प्रति सजग रहना है. अपने विचारों के प्रति सजग रहना है.
लॉक डाउन के दौरान दिन कैसे गुज़ारे
लॉक डाउन के दौरान दिन कैसे गुज़ारे (29.03.2020)
2020 की पहली तिमाही में पुरे विश्व को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया गया है. भारत ही नहीं विश्व के अन्य कई देश लॉक डाउन है. केवल कुछ जरुरी सेवाओं को छोड़ कर सम्पूर्ण बंद. लोग घरों पर है. लेकिन बंद होकर रहने की आदत किसे है. लेकिन इस न दिखने वाले दुश्मन के आगे हर कोई बेबस है.
(भारत में 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 तक करोना वायरस की वजह से प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी ने लॉक डाउन घोषित किया है)
खैर घर पर तो हमें रहना ही है. सारा दिन हम करे क्या यह आज हमारे सामने एक समस्या है. कुछ टिप्स हम आपको दे रहे है जो आप अपने घर पर बैठे हुए कर सकते है.
इस दौरान यह कीजिये
सुबह और शाम योग आसन, ध्यान कर सकते है.
दिन में एक समय ऐसा निश्चित करे जिस समय आप कुछ लिखिए. कुछ भी जो आपको पसंद हो.
कुकिंग सीख सकते है. आज ऑनलाइन बहुत कुछ उपलब्ध है.
कोई ऑनलाइन कोर्स ज्वाइन कर सकते है.
सोशल मीडिया पर लोगो तक सही जानकारी पहुचाने का कार्य कर सकते है.
मोबाइल से हर दिन के अपने आसपास के फोटोग्राफ ले सकते है.
मोबाइल पर रोजाना 3 या और अधिक विडियो अपने आसपास के बना सकते है.
जरुरी सुचना गवर्नमेंट को पहुचाने का कार्य कर सकते है. जैसे की कही लोगों का हजूम हो – सूचना.
कुछ समय पेंटिंग कीजिये. एक बार कौशिश कीजिये आपको बहुत अच्छा लगेगा.
घर के छोटे बच्चे इस लॉक डाउन में क्या सोच रहे इस पर विडियो बना सकते है.
घर के बुजुर्ग इस लॉक डाउन के बारे में क्या सोचते है इस बात पर विडियो बना सकते है.
आप खुद कैसा महसूस कर रहे इस बात पर विडियो बना सकते है.
इस दौरान बच्चों के साथ कोई भी गेम खेल सकते है.
इस करोना वायरस के बारे में अधिक से अधिक जानकारी को इकठ्ठा करने का काम कर सकते है.
लॉक डाउन में लोगो ने कैसे कैसे फेस-मास्क पहन रखे है – यह फोटोग्राफी कर सकते है.
फेस मास्क पहन कर आपको और आपके जानने वालो को कैसा लगता है यह जानकारी इकठ्ठा कर सकते है.
अच्छी किताबों को पढ़ सकते है. आज ऑनलाइन बहुत सारी ई-बुक्स फ्री मिल जाती है.
कुछ अच्छी मूवीज देख सकते है.
इन्टरनेट से कुछ नया सीख सकते है.
कोई नयी भाषा सीख सकते है जैसे इंग्लिश या की और.
नयी नयी बाते सोचने का भी कार्य कर सकते है. एक बार कौशिश अवश्य कीजियेगा.
रोजाना कुछ लोगो की फ़ोन पर तारीफ का कार्य कर सकते है.
इस तरह से हम अपना अपना समय अच्छे से गुजारने का कार्य कर सकते है.
दूसरों की हीलिंग कैसे करे – How to Heal Others
खुद की और द्सुरों की हीलिंग कैसे करे
आज हीलिंग एक थेरेपी है. जिसका प्रयोग अब वैज्ञानिक होता जा रहा है. हीलिंग काम करती है इसमें कोई भी शक नहीं है. लेकिन जैसे कोई ही काम करने से पहले सीखना पड़ता है ठीक वैसे ही हीलिंग भी सीखनी पड़ती है.
हीलिंग अगर अच्छे से सीख कर की जाये तो यह बहुत ही अच्छा काम करती है. दूसरी पद्धतियों की तरह इसके रिजल्ट्स भी तुरंत आते है.
हीलिंग अच्छे से हो इसके लिए एक ही योग्यता है – ध्यान. अगर आप को अच्छा ध्यान करना आता है तो आपको फिर अच्छी हीलिंग करनी भी आती है. अगर आप मेरी बताई हुई हीलिंग कर रहे है और आपको उसके अच्छे रिजल्ट्स नहीं मिल रहे है तो समझ लीजिये कि आपको अच्छे से ध्यान करना नहीं आता है. हीलिंग पॉवर को बढ़ाने के लिए ध्यान के समय को बढ़ाने की जरुरत है.
आप इसके लिए ॐ उच्चारण की सहायता ले सकते है. हीलिंग से पहले यदि कुछ देर ॐ का उच्चारण करेंगे तो परिणाम बहुत ही अच्छे आयेंगे.
हीलिंग में दूरियां महत्व नहीं रखती. आप अपने घर बैठे हुए कितनी भी दूर बैठे हुए व्यक्ति को अपनी हीलिंग भेज सकते है. लेकिन भेज आप वही सकते है जो आपके पास हो. आपके पास ही नहीं होगा तो आप किसी और को नहीं दे सकते.
नीचे Step-by-Step हीलिंग का तरीका सिखाया गया है.
दूसरों की हीलिंग कैसे करे ?
ब्लू लाइट हीलिंग तकनीक
किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जाये.
आँखों को बंद कर लीजिये.
आँखों को तब तक बंद रखना है जब तक हीलिंग प्रक्रिया समाप्त न हो जाये.
रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए.
शरीर तना हुआ भी नहीं होना चाहिए.
सबसे पहले 5 मिनट बोल कर ॐ का उच्चारण करे.
फिर ध्यान को दोनों आँखों के बीच लेकर आये.
अब मन ही मन ॐ का उच्चारण करते हुए ॐ को सुने
अब बिलकुल चुप हो जाये
न बोलना है और न ही सुनना है
बस देखना है दोनों आँखों के बीच
धीरे धीरे एक नीले रंग की रौशनी दिखाई देनी शुरू होगी
अगर नीले रंग की रौशनी दिखाई नहीं दे तो उसकी कल्पना करनी है
अब महसूस करना है कि उस नीले रंग की रौशनी ने आपको चारों ओर से ढक लिया है
आपको शक्ति दायिनी नीले रंग की रौशनी से एक अनजानी शक्ति मिल रही है.
कम से कम 5 मिनट तक शक्ति दायिनी रौशनी को अपने चारो और महसूस करना है.
इस तरह से पहले आपकी खुद की हीलिंग होगी.
अब जिसकी आप हीलिंग करना चाहते है. उसको अपने सामने महसूस करना है.
मन ही मन उसका नाम लेना है.
अब शक्ति दायिनी नीले रंग की रौशनी को उस व्यक्ति की ओर भेजना है.
जैसे खुद के चारों ओर महसूस किया था वैसे ही उस व्यक्ति के चारों ओर महसूस करना है.
कम से कम 5 मिनट उस व्यक्ति को हीलिंग भेजनी है.
उसके बाद 2 मिनट तक फिर से खुद की हीलिंग करनी है.
अब ध्यान को फिर से दोनों आँखों के बीच लेकर आना है.
शक्ति दायिनी नीले रंग की रौशनी का धन्यवाद करना है.
फिर से 2 मिनट ॐ उच्चारण करना है.
अब धीरे से आँखों को खोल लेना है.
इस तरह से आप खुद की और दुसरे व्यक्ति की हीलिंग कर सकते है.
ध्यान साधना में आने वाले विघ्न और उनके समाधान – Meditation Problem Solving
ध्यान, साधना में आते है यह 9 प्रकार के अवधान
योग साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक के रास्ते में तरह तरह के विघ्न आते है जिससे कि अक्सर साधक अपने पथ से विचलित हो जाते है. कई बार यह विघ्न इतने तीव्र होते है कि साधक को पता ही नहीं चल पाता. योग साधना निरन्तर चलती रहे तभी साधना में अच्छे रिजल्ट्स मिलते है. एक बार साधक अगर पथ भ्रष्ट हो जाये तो जल्दी से वापिस आना भी मुश्किल हो जाता है.
9 प्रकार के अवधान है जो साधना मार्ग में हर साधक के आगे आते है. इन विघ्नों के बारे हर साधक को जानना आवश्यक है.
महर्षि पतंजलि ने पतंजलि योग सूत्र में सूत्र संख्या 30 में इसके बारे में बताया है.
यह 9 विघ्न इस प्रकार से है
- शरीरिक रोग या मन सम्बन्धी रोग
- अकर्मण्यता – कुछ भी न करने का मन करना
- संदेह – खुद पर और योग पर संदेह उत्पन्न हो जाना
- योग साधना में बेपरवाही बरतना
- शरीर में भारीपन के कारण आलस्य आना
- वैराग्य की भावना अचानक ख़त्म हो जाना
- मिथ्याज्ञान आ जाना – यानि रस्सी को सांप और सांप को रस्सी समझना
- चित की चंचलता बढ़ जाना
- समाधि की अप्राप्ति – यानि समाधि को छूते छूते रुक जाना
यह सारे के सारे विघ्न है जो साधना के मार्ग में हर साधक के सामने किसी न किसी रूप में आते है. अगर साधक सचेत है तो सही नहीं तो ये विघ्न साधक को उसके मार्ग से हटाने में कामयाब होते ही है.
यह वास्तव में चित की चंचलता की वजह से होते है. इन विघ्नों को योग के अन्तराए भी कहते है.
इसका समाधान क्या है?
पहला तरीका एक अच्छे गुरु का होना जो आपको हरदम एक उचित दिशा देता रहे.
दूसरा तरीका है ॐ का उच्चारण. ॐ, प्रणव, इक ओंकार एक ही है. अगर आप हिन्दू धर्म से नहीं है या फिर किसी कारणवश ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते है तो इसकी जगह भ्रामरी प्राणायाम भी कर सकते है.
तीसरा तरीका है मन ही मन ॐ का जप
चोथा तरीका है शाश्त्र अध्यन करना. अपने धर्मानुसार किसी भी शाश्त्र का आप अधयन्न कर सकते है.
सबसे जरुरी है निरंतर प्रयास. चाहे कुछ भी मन में आये फिर भी निरंतर प्रयास करना अति आवश्यक है.
खुद की हीलिंग कैसे करे
आज हम जीवन के एकऐसे दौर से गुजर रहे है जहाँ हमारा मन तरह तरह की अनिश्चितताओं से गुजर रहा है. आज मन में सब कुछ अनिश्चित है. समय और जीवन का पता नहीं कैसा सम्बन्ध है. कभी समय खुशहाली लाता है तो कभी समय बदहाली लाता है. वर्ष 2020 जबशुरू हुआ है इस बात का समूचे विश्व को अहसास हुआ है कि समय और जीवन में कुछ खास ही सम्बन्ध है. ऐसा लग रहा है कि सुख और दुःख एक खास तरीके से समय के अंदर पिरोये हुए है.
खैर हम कर भी क्या सकते है. मानव जाति का कार्य है अनिश्चितताओं में भी निश्चितता ढूँढना. पता ही नहीं कितनी बार मनुष्य जाति पर न जाने कितने कितने संकट आये और कैसे मनुष्य जाति उनसंकटों को पार करके जीवन को फिर निश्चितता की पटरी पर लेकर आई.
मैं आपको हीलिंग करना सिखाना चाहता हूँ. यह कोई मेडिसिन नहीं है. लेकिनयह एक पद्धति है. मैंने इसका प्रयोग कियाऔर अच्छे रिजल्ट्स भी पाए. दुःख में मानव के पास जबकोई रास्ता नहीं बचता तो उसके पास एक ही रास्ता बचता है वो है प्रार्थना का. हीलिंगउस प्रार्थना का ही एक तकनीकी रूप है.
हीलिंगकाम करती है इसमें कोई भी शक नहीं है. लेकिन जैसे कोई ही काम करने से पहले सीखना पड़ताहै ठीक वैसे ही हीलिंग भी सीखनी पड़ती है. जैसे हर व्यक्ति हर काम में सफल नहीं होता वैसे ही हर कोई हीलिंग करने में भी सफल नहीं होता. लेकिनजो सफल होते है उनकी हीलिंग काम करती है.
हीलिंगके लिए एक हही योग्यता है – ध्यान. अगर आप को अच्छा ध्यान करना आता है तो आपको फिर अच्छी हीलिंग करनी भी आती है. अगर आप मेरी बताई हुई हीलिंग कर रहे है और आपको उसके अच्छे रिजल्ट्स नहीं मिल रहे है तो समझ लीजिये कि आप अच्छे ध्यानी नहीं है. हीलिंगपॉवर को बढ़ाने के लिए ध्यान को बढ़ाने की जरुरत है.
हीलिंगमें दूरियां महत्व नहीं रखती. आप अपने घर बैठे हुए कितनी भी दूर बैठे हुए व्यक्ति को अपनी हीलिंग भेज सकते है. लेकिन भेज आप व्ही सकते है जो आपके पास प्रचुर मात्रा में होता है.
हीलिंग कैसे करे ?
ब्लू लाइट हीलिंग तकनीक
किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जाये.
आँखों को बंद कर लीजिये.
आँखों को तब तक बंद रखना है जब तक हीलिंग प्रक्रिया समाप्त न हो जाये.
रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए.
शरीर तना हुआ भी नहीं होना चाहिए.
सबसे पहले 5 मिनट बोल कर ॐ का उच्चारण करे.
फिरध्यान को दोनों आँखों के बीच लेकर आये.
अब मन ही मन ॐ का उच्चारण करते हुएॐ को सुने
अबबिलकुल चुप हो जाये
न बोलना है और न ही सुनना है
बस देखना है दोनों आँखों के बीच
धीरे धीरे एक नीले रंग की रौशनी दिखाई देनी शुरू होगी
अगरनीले रंग की रौशनी दिखाई नहीं दे तोउसकी कल्पना करनी है
अब महसूस करना है कि उस नीले रंग की रौशनी ने आपको चारों ओर सेढक लिया है
आपकोशक्ति दायिनी नीले रंग की रौशनी से एक अनजानी शक्ति मिल रही है.
कम से कम 5 मिनट तक शक्ति दायिनी रौशनी को अपने चारो और महसूस करना है.
इस तरह से आपकी खुद की हीलिंग होगी.
आज मैंने 134 करोड़ लोगो को एक होते हुए देखा
हम सब एक है इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन अब तक मेरे लिए यह केवल शब्द थे. मुझे हम सब के एक होने का कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं था. होगा भी कैसे आज हमारे देश की आबादी 134 करोड़ को भी पार कर चुकी है. कहते है दुःख में कोई अपना सिर पर बस हाथ ही रख दे तो दुःख आधा हो जाता है. ऐसे ही मुसीबत से जूझते हुए को थोड़ा सा अपनापन दिखा कर उत्साहित कर दे तो काम करने की शक्ति कई गुणा बढ़ जाती है.
आज हम करोना वायरस की त्रासदी के दौर से गुजर रहे है. मन में एक अनजाना सा डर है. सब तरफ अनिश्चितता है. डर बहुत ही बड़ा है और व्यापक है. मृत्यु से डरना मनुष्य के लिए स्वाभाविक है.
लेकिन हमारे समाज में हमारे कुछ ऐसे भाई बहन भी है जो हमारे लिए सीधा करोना वायरस से टक्कर ले रहे है. हमे बचाने के लिए वो अपना जीवन संकट में डाले हुए है. डॉक्टर्स, नर्से, सफाई कर्मचारी, स्वस्थ विभाग के कर्मचारी, भारतीय रेल के कर्मचारी, विमान विभाग के सभी कर्मचारी, रोडवेज के ड्राइवर्स, कंडक्टर्स और वो हर व्यक्ति जो आज इस virus से हमें बचाने के लिए जूझ रहा है.
22 मार्च 2020, रविवार को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्दर मोदी जी ने हमारे इन सैनिको की उत्साह वृद्धि और धन्यवाद के लिए सभी भारतियों को इस दिन शाम को 5 बजे 5 मिनट के लिए अपने घर की बालकोनी या छत पर खड़े होकर ताली, थाली या फिर शंख नाद करने के लिए उत्साहित किया.
जैसे ही 22 मार्च 2020, रविवार को शाम के 5 बजे मैंने देखा कि हमारे भाई और खासतौर पर हमारी बहनें, छोटे बच्चे , घर के सभी सदस्य; सब के सब अपने घर की या तो बालकोनी पर थे या फिर छत पर. कोई ताली बजा रहा था तो कोई थाली बजा रहा था. कोई शंख बजा रहा था तो को ढोल, ढोलक. हर कोई अपनी इस खास सेना का धन्यवाद करना चाहता था. हर कोई उनका उत्साह बढ़ाना चाहता था.
हर छत पर भारतीय था. कोई हिन्दू नहीं था, कोई मुस्लिम नहीं था कोई सिख नहीं था कोई ईसाई नहीं था. हर छत पर भारतीय था. ऐसा लग रहा था कि पूरा भारत छतों पर आ गया हो. कमाल का दृश्य था. 134 करोड़ लोग एक थे. हम सब एक थे. सभी के सभी इंसान थे. सभी के सभी भारतीय थे. किसी के मन में नहीं था कि वो मुस्लिम है, कि वो हिन्दू है. हर किसी के मन में एक ही बात थी कि वो एक भारतीय है.
क्या करे जब साधना में अंग कांपने लगे
ध्यान साधना खुद को जानने के लिए और ईश्वर को समझने के लिए की जाती है. हमारी सबसे बड़ी अड़चन हमारा खुद का मन है. साधना में हम अपने मन को ही साध रहे होते है. मन को साधते साधते बहुत सारे विकार मन में पैदा होने लगते है. मन के इन विकारों का असर हमारे शरीर पर हमारे मन पर और हमारी अध्यात्मिक यात्रा पर होने लगता है.
ध्यान करते करते कई बार अचानक शरीर के किसी अंग में अचानक कम्पन होने लगता है. कई बार यह अंग जोर से फड़फाड़ने भी लगते है. जिस से कई बार साधक विचित्र रूप से डर जाता है.
मन को काबू में करना इतना आसान कार्य नहीं है. कई बार साधन करते करते मन और भी अधिक विक्षिप्त होने लगता है. हालंकि यह लक्षण हर साधक में नहीं दिखते. इसलिए किसी भी प्रकार की साधना में एक अच्छे गुरु का होना बहुत जरुरी है. इसलिए साधक को मालूम होना चाहिए की किस स्थिति के उसे क्या करना है.
कई बार स्वास-प्रवास तेज़ होने लगता है. सांसे बहुत ही तेज़ी से चलने लगती है. प्राण बड़ी तेज़ी से अंदर बाहर होने लगता है. ऐसे भी भी साधक बहुत डर जाता है. लेकिन यदि पहले से ही इन सब बातों के बारे में मालूम हो साधन में आसानी होती है.
कई बार कोई सांसारिक ईच्छा पूर्ण न होने के कारण मन में एक अलग ही प्रकार की उदासी आ जाती है. साधक के न चाहते हुए भी यह उदासी बनी रहती है और किसी भी सांसारिक मनोरंजन से यह उदासी दूर नहीं होती.
इस तरह के विघ्नों से यह पता चलता है कि हम अपनी साधना में आगे तो बढ़ रहे है लेकिन हमें अपने साधन को बदलने की आवश्यकता है और अपनी साधना में नए साधन जोड़ने की आवश्यकता है.
अब बात आती है कि इस प्रकार की समस्या को दूर कैसे किया जाये. अकसर हम इन समस्यायों के लिए एलोपैथी या अन्य दवाइयों का सहारा लेने लगते है|
ऐसे में हमें योग गुरु की मदद से समस्या का समाधान ढूँढना चाहिए.
यह समस्या जितनी विकराल दिखती है इसका समाधान उतना ही आसान है. इसका समाधान पतंजलि योग सूत्र में दिया गया है.
पतंजलि इस समस्या के निदान के लिए प्रणव का सहारा लेने की सलाह देते है. ॐ का उच्चारण करने से इन सभी समस्याओं से निजात मिलने लगता है. एक ही तत्व का अभ्यास करना चाहिए.
जैसे जैसे ॐ का उच्चारण साधक करता है वैसे वैसे उसके मन का विचलन घटता चला जाता है. ॐ शरीर में एक नए तरह का विधुत प्रवाह होने लगता है. ॐ के उच्चारण से पैदा हुआ विधुत प्रवाह ही इस समस्या से बहार निकाल कर आता है.
जानिए अपने ही मन की कमजोरियों के बारे में
मन बहुत ही विशाल है बहुत ही विशाल. पतंजलि ने बताया की चित की वृतियों का निरोध ही योग है. पतंजलि योग सूत्र में विभिन्न समाधियों का वर्णन है. योग के अभ्यास के माध्यम से मन जैसे जैसे नियंत्रण में आने लगता है तो तब पैदा हुई मन की विभिन्न स्थितियों को हम समाधि कहते है. पतंजलि ने समाधि का नाम दिया है. जैसे मन का कुछ भाग नियंत्रण में आया तो एक तरह की समाधि हुई. फिर और उसके आगे का भाग नियंत्रण में आया तो एक अन्य तरह की समाधि हुई. इस तरीके से साधक मन की बाड़ को तोड़ता हुआ विभिन्न प्रकार की समाधियों का अनुभव करता हुआ अध्यात्म की यात्रा में खुद के अंदर की ओर आगे बढ़ता है.
पांच तरह की चित की वृतियों के माध्यम से मन भागता है. मन की एक उपरी सतह है जिसके कारण व्यक्ति सुने हुए और देखे हुए प्रलोभन रूपी सांसारिक सुखो की ओर भागता है. यानि कि बाहरी सुखों की ओर मन भागता है. सुनी हुई बातों की ओर. जो मन में बाहरी विचार घूमते रहते है उनमे मन भागता है. यह मन की त्रुटि है या यह कह सकते है कि मन की यह एक कार्य शैली है कि किसी की भी बात सुन कर हमारा मन क्षणिक सुख के लिए ताने बाने बुनने लगता है. मन के अंदर अपने विचार तो है ही परन्तु बाहरी विचार मन पर अत्यधिक प्रभाव डालते है.
अगर इस समस्या का समाधान कर लिया जाये तो बच्चों को बिगड़ने से बचाया जा सकता है. समाज में बिगड़े हुए बच्चों को संवारा जा सकता है. इसके लिए मन की टेक्नोलॉजी को समझना होगा. हमारे जीवन का ज्यादातर हिस्सा तो बाहरी विचारो की भेट ही चढ़ जाता है. क्यूंकि सबसे ज्यादा हम अपने ही परिवेश से प्रभावित होते है. यह सब ऑटोमेटिकली चल रहा है. क्यूंकि मन बना ही इस तरह हुआ है. मन की इसी कमजोरी की वजह से ही आंतकवाद है. क्यूंकि बाहरी विचारो का मन पर अत्यधिक असर पड़ता है. नशे की लत युवाओं में इसी वजह से पैदा होती है. लुभावनी बाते जैसे सामने आई मन उसी समय भागने लगा.
पतंजलि ने समाधान बताया है. मन की इस समस्या का समाधान बताया है. एक शब्द आता है पतंजलि योग सूत्र में “वशीकार वैराग्य”.. पतंजलि योग सूत्र संख्या 15.
देखे और सुने हुए विषयों में सर्वथा तृष्णारहित चित की जो वशीकार नामक अवस्था है वह वशीकार वैराग्य है.
इसका मतलब यह है कि मन की उपरी सतह जब वश में आती शुरू हो जाती है तब की स्थिति. उपरी सतह मतलब मन का वो भाग जिसमे बाहरी विचार अपना जोर दिखा सकते है. वशीकार वैराग्य जब घटित हो जाता है तो बाहरी लुभावने विचार अपना असर दिखाना बंद कर देते है. काफी हद तक चुपी छा जाती है. जब वशीकार वैराग्य तक व्यकित पहुच जायेगा तब कोई आकर किसी लुभावनी विषय/वस्तु के बारे में लुभाने की कौशिश करेगा तो मन के अंदर उस विषय/वस्तु के प्रति प्रतिउत्तर नहीं पैदा होगा.
यह कमाल की जीत होगी क्यूंकि आमतौर पर व्यक्ति बाहरी विचारो में अंदर ही जीता है. और इस स्थिति से बाहर निकलना वशीकार वैराग्य कहलाता है. बाहरी भोगो के प्रति तृष्णा का मिट जाना. बड़े कमाल का अनुभव होता है. इसलिए ही महर्षि पतंजलि ने इस स्थिति को काबू पाने को सम्प्रज्ञात समाधि का नाम दिया. इस समाधि में चित वृति का समाधान हो जाता है और चित की वृतियां बाहर भागने से रुक जाती है.
लेकिन यह जो हो रहा है मन की बाहरी सतह पर हो रहा है. क्यूंकि अभी बाहरी वृतियां ही रुकी है. अंदर जो था वो वैसा ही है जैसा वो था. क्यूंकि चित की वृतियां अंदर अवचेतन मन में बीज के रूप में विद्यमान रहती है.
तो हम बात कर रहे थे सम्प्रज्ञात समाधि की. यह सम्प्रज्ञात समाधि भी एक क्रम से सिद्ध होती है. जो यह चित की वृतियां है इनका सम्बन्ध वितर्क, विचार, आनंद और अस्मिता है. इन चारो को पहले हम समझेगे कि इनका मतलब क्या है? फिर महर्षि पतंजलि ने इन चारो का निर्मूलन करने के लिए क्या कहा उसके बारे में बात करेगे.
बाहर से जो ज्ञान हमें मिलता है या फिर हमारे अनुभव ने आता है वो हमारे मन में जमा होता रहता है और समय आने पर यह ज्ञान, यह अनुभव परिस्थिति के अनुसार जागृत हो जाता है. इसे वितर्क स्थिति कहते है. यहाँ जो जमा हुआ वो बाहर से मिला हुआ है इस बात को याद रखना है. जब ध्यान साधना से मन अपने आप ही बाहरी विषय वस्तुओं का निरोध करने लगता है तो मन की अवस्था को सवितर्क समाधि कहते है. इसे सविकल्प समाधि भी कहते है.
अब बात को थोड़ा ओर गहराई से समझना होगा. सविकल्प समाधि. यहाँ मन ने बहिये पदार्थो को ग्राह तो करना बंद कर दिया परन्तु उन पदार्थो से सम्बंधित शब्द, अर्थ और ज्ञान अभी भी मन के अंदर है. यानि कि जिन बाहरी पदार्थो के पीछे मन ने भागना बंद किया है उनका विकल्प अभी भी मोजूद है. अवस्था यह भी सम्प्रज्ञात समाधि की ही है परन्तु अभी यात्रा शुरू हुई है.
जब मन सम्बंधित पदार्थो के शब्द और उनके अर्थ और उनके ज्ञान का भी निरोध करने लगता है तो इसे निविर्तर्क समाधि या फिर निर्विकल्प समाधि कहते है. इसका मतलब यह हुआ की अब केवल मन बाहरी पदार्थो से नहीं छुटा परन्तु बाहरी पदार्थो के जो विकल्प थे वो भी समाप्त हो गए.
इस तरह से दो प्रकार की समाधियों को हमने समझा. सविकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि.
अब और आगे बढ़ते है अंदर की ओर.
अभी मन की बाहरी सतह पर काम किया अब थोड़ा अंदर की बात करते है. क्यूंकि सविकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि के बाद बाहर की लुभावनी बातों से तो पीछा छुट जाता है और मन भागना बंद कर देता है. चित की बाहरी वृतियां शांत हो जाती है. बाहर से संगृहीत विचारों का क्रम बंद हो जाता है परन्तु स्वयं के अंदर अंदर विचार चलते रहते है क्यूंकि अभी बाहर से आना जाना बंद हुआ है. अब निर्णय भीतर से आने लगता है. विचार इसी अवस्था को कहते है. पहले जो बात हो रही थी वो वो तर्क-वितर्क की हो रही थी. अब हम मन की उस अवस्था की बात कर रहे है जहा विचार पैदा हो रहे है अब यह आपके अपने विचार है पहले जो तर्क वितर्क थे वो बाहरी थे.
अब मन की एक आन्तरिक लेयर की ओर बढ़ेगे जहाँ विचार पैदा हो रहे है. अब क्या होता है कि जब बाहर के विचार समस्यां करनी बंद कर देते है तो अंदर के विचार आकर खड़े हो जाते है. हमें ध्यान के द्वारा इस अवस्था को भी पार करना होता है.
पहले निर्णय बाहर से आ रहा था उस पर हमने जीत हासिल कर ली. अब निर्णय भीतर से आ रहा है. जिसे विचार कहते है जैसा कि मैंने बताया आपको. अब ध्यान की शक्ति से मन के इस भाग को भी कण्ट्रोल में लेना है ताकि वो विचारो का भी निरोध करने की स्थिति में आ सके. विचार भी एक तरह से पदार्थों के सूक्ष्म रूप ही होते है. तो ध्यान की यात्रा में आगे बढ़ते हुए मन जब विचारों का जब निरोध कर देता है. तो उस स्थिति को सविचार समाधि कहते है. अब मन में अथाह शांति उठने लगेगी. लेकिन जैसे सविकल्प समाधि में था वैसे ही यहाँ भी होता है कि विचारो का निरोध तो हो जाता है परन्तु उनसे सम्बंधित शब्दों का, उनके अर्थ और उन शब्दों का ज्ञान अभी भी रहता है. विचारो का तो निरोध तो हो जाता है परन्तु शब्दों का और उनके अर्थो का अस्तित्व बना रहता है. जब ध्यान के द्वारा हम विचारों के साथ साथ विचारो से सम्बंधित शब्दों का और उनके अर्थो का और उनसे जुड़े हर प्रकार के ज्ञान का भी निरोध कर देते है तो इस समाधि का नाम होता है निर्विचार समाधि. यह वो स्थिति है जहाँ विचार तो उठते है और इसके साथ साथ सम्बंधित शब्दों का और उनके अर्थो का और उनसे जुड़े हर प्रकार के ज्ञान का भी उन्मूलन हो जाता है. यहाँ दूर दूर तक किसी प्रकार की कोई भी हलचल नहीं होती मन में. विचारो का कर्म सर्वथा रुक जाता है. जब विचारो का कर्म रुक जाता है तो साधक को आनंद की अनुभूति होने लगती है. यह आनंद भीतर के अनुभव के कारण आता है.
यह वो आनंद होता है जिसकी आपने कई बार
संकल्प शक्ति का रहस्य
योगवाशिष्ठ
योगवाशिष्ठ एक भारतीय ग्रन्थ है जोकि रहस्यमयी शाश्त्र है. यह उस समय का ग्रन्थ है जब श्री राम जी ने गुरु वशिष्ट के साथ कुछ समय गुजारा था. तरह तरह का सांसारिक और अध्यात्मिक ज्ञान ऋषि वशिष्ठ ने श्री राम जी को दिया था. आज यह ज्ञान एक अति सुंदर पुस्तक के रूप में विद्यमान है.
दासूरोपख्यान
योग वशिष्ठ में कई तरह के उपख्यान कहे गए है. ऐसा ही एक उपख्यान है जिसका नाम है दासूरोपख्यान. यहा ऋषि वशिष्ठ में बताया है कि:-
सारा जगत संकल्प का ही एक प्रसार है. संकल्प ही सभी पदार्थो का उत्पादक है. संकल्प द्वारा ही संसार की रचना होती है. इस संसार का मतलब है कि बहुत सारे संकल्प एक साथ. यह संसार केवल और केवल एक संकल्प नगर है जोकि शुद्ध चिदाकाश में उदय होता है और इसी में लय हो जाता है.
इस संकल्प शक्ति के कई नियम है जिनका अगर अनुसरण किया जाये तो जीवन में अपनी सभी इच्छाएं पूर्ण की जा सकती है. हालांकि इच्छाओं को पूर्ण करना अध्यात्मिक यात्रा के विपरीत है. लेकिन भी भी जरुरी कार्यो के लिए संकल्प शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है.
संकल्प मन में पैदा होते है और फिर इस संसार में रूप लेने लगते है. इस संसार के सारे रूप और रंग कभी संकल्प थे. लेकिन हर संकल्प रूप नहीं लेता यह भी सत्य है. इसलिए यह जानना अतिआवश्यक है कि संकल्प कैसे रूप और रंगों में परिवर्तित होते है.
शतरुद्रोपख्यान
इसी शाश्त्र योगवाशिष्ठ में एक और उपाख्यान है जिसका नाम है – शतरुद्रोपख्यान. इस उपाख्यान में इस राज़ को बताया गया है.
“मन में जो संकल्प होता है वही यथासमय सत्य रूप से प्रतीत होने लगता है और मन जितना शुद्ध और पवित्र होता है उतनी ही तीव्रता से संकल्प घनीभूत हो जाता है” – ऋषि वशिष्ठ
शुद्ध मन जैसा संकल्प करता है तुरंत वैसा वैसा होने लगता है. इसके लिए चाहिए शुद्ध मन. मन शुद्ध भी होता है और अशुद्ध भी. योगियों के, ज्ञानियों के मन शुद्ध होते है.
शुद्ध मन कैसा होता है?
विचार रहित मन शुद्ध होता है. मन में जितने कम विचार होंगे मन उतना ही शुद्ध होगा, इसलिए योगियों के और ध्यान करने वालो के मन शुद्ध होते है.
मन कैसे शुद्ध होता है ?
विचारों को कम करने से मन शुद्ध होने लगता है. उसके लिए ध्यान की विभिन्न विधियाँ है. असल में सारा का सारा खेल मन का ही है. मन के शुद्ध होने से कई तरह के चमत्कार होने लगते है.
भारत में योगियों ने अकसर ऐसे चमत्कार किये है. संकल्प शक्ति का विकास शुद्ध मन में ही हो सकता है.
जो जिस वस्तु को निरंतर चाहता है और जिसका मन शुद्ध है वो उस वस्तु को प्राप्त कर ही लेता है.
जड़ क्या है और चेतन क्या है
भगवद्गीता – कृष्ण और अर्जुन
भगवद्गीता के अध्याय संख्या 7 के श्लोक संख्या 4 और 5 में श्री कृष्ण अर्जुन को इस खास विषय के बारे में समझा रहे है.
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च । अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् । जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान॥4-5॥
यहाँ देखिये कि पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश को जड़ पदार्थ कहा है जोकि दिखते भी जड़ पदार्थ ही है. लेकिन उसके बाद मन और बुद्धि को भी जड़ पदार्थ बताया है जोकि बिल्कुल भी जड़ पदार्थ प्रतीत नहीं होते. क्यूंकि हमें अपना मन तो हरदम चलता हुआ प्रतीत होता है. जबकि श्री कृष्ण यहाँ हमारे मन को ही जड़ बता रहे है.
अहंकार को भी जड़ बताया है
उसके बाद हमारे अहंकार को भी जड़ बताया है. यानि हमारा होना यानि कि जो मुझे महसूस हो रहा है कि “मैं हूँ” यह भी जड़ है. यह भी चेतन नहीं है.
फिर चेतन क्या है? भगवान श्री कृष्ण आगे कहते है – “यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान”
पृथ्वी जड़ है, जल जड़ है, अग्नि जड़ है, वायु जड़ है, आकाश जड़ है, मन जड़ है, बुद्धि जड़ है यहाँ तक की हमारा होना यानि हमारा अहंकार भी जड़ है. लेकिन जिस उर्जा के कारण यह सब चेतन प्रतीत हो रहे है वो उर्जा चेतन है.
क्वांटम फिजिक्स
थोड़ा आज के विज्ञानं के माध्यम से समझते है. क्वांटम फिजिक्स – क्वांटम विज्ञानं के अनुसार उर्जा के 2 रूप है. लेकिन उर्जा एक ही है. एक ही उर्जा के 2 रूप है. एक रूप स्थिर है वही दूसरा रूप गतिशील है.
एक ही उर्जा पदार्थ भी है और वही उर्जा उसी समय पदार्थ न होकर तरंग भी है. यही क्वांटम थ्योरी है. सांख्य और योग 2 अनादि एवं स्वतंत्र सत्ताएं मानते है. प्रकृति और पुरुष. प्रकृति जड़ है और पुरुष चेतन. एक ही समय में एक ही उर्जा प्रक्रति भी है और उसी समय में वही की वही उर्जा पुरुष भी है.
परम तत्व
वो उर्जा मुक्त तौर पर परम तत्व है. वो परम तत्व जो न विद्या है और न ही अविद्या, न प्रकाश है और नहीं ही अन्धकार, न आत्मा है और न ही अनात्मा, न भाव रूप है और न ही अभाव रूप है. न सगुण है और न ही निर्गुण है, न समीप है और न ही दूर है. वो अद्वितीय है उसकी कोई तुलना हो ही नहीं सकती. उसे कोई नाम दिया ही नहीं जा सकता. उसे सोचा ही नहीं जा सकता वो हमारी सोच से ही परे है.
उसकी बस बात की जा सकती है. वो जड़ से भी परे है और जिसे हम चेतन समझते है उस से भी परे है.