ध्यान, साधना में आते है यह 9 प्रकार के अवधान
योग साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक के रास्ते में तरह तरह के विघ्न आते है जिससे कि अक्सर साधक अपने पथ से विचलित हो जाते है. कई बार यह विघ्न इतने तीव्र होते है कि साधक को पता ही नहीं चल पाता. योग साधना निरन्तर चलती रहे तभी साधना में अच्छे रिजल्ट्स मिलते है. एक बार साधक अगर पथ भ्रष्ट हो जाये तो जल्दी से वापिस आना भी मुश्किल हो जाता है.
9 प्रकार के अवधान है जो साधना मार्ग में हर साधक के आगे आते है. इन विघ्नों के बारे हर साधक को जानना आवश्यक है.
महर्षि पतंजलि ने पतंजलि योग सूत्र में सूत्र संख्या 30 में इसके बारे में बताया है.
यह 9 विघ्न इस प्रकार से है
- शरीरिक रोग या मन सम्बन्धी रोग
- अकर्मण्यता – कुछ भी न करने का मन करना
- संदेह – खुद पर और योग पर संदेह उत्पन्न हो जाना
- योग साधना में बेपरवाही बरतना
- शरीर में भारीपन के कारण आलस्य आना
- वैराग्य की भावना अचानक ख़त्म हो जाना
- मिथ्याज्ञान आ जाना – यानि रस्सी को सांप और सांप को रस्सी समझना
- चित की चंचलता बढ़ जाना
- समाधि की अप्राप्ति – यानि समाधि को छूते छूते रुक जाना
यह सारे के सारे विघ्न है जो साधना के मार्ग में हर साधक के सामने किसी न किसी रूप में आते है. अगर साधक सचेत है तो सही नहीं तो ये विघ्न साधक को उसके मार्ग से हटाने में कामयाब होते ही है.
यह वास्तव में चित की चंचलता की वजह से होते है. इन विघ्नों को योग के अन्तराए भी कहते है.
इसका समाधान क्या है?
पहला तरीका एक अच्छे गुरु का होना जो आपको हरदम एक उचित दिशा देता रहे.
दूसरा तरीका है ॐ का उच्चारण. ॐ, प्रणव, इक ओंकार एक ही है. अगर आप हिन्दू धर्म से नहीं है या फिर किसी कारणवश ॐ का उच्चारण नहीं करना चाहते है तो इसकी जगह भ्रामरी प्राणायाम भी कर सकते है.
तीसरा तरीका है मन ही मन ॐ का जप
चोथा तरीका है शाश्त्र अध्यन करना. अपने धर्मानुसार किसी भी शाश्त्र का आप अधयन्न कर सकते है.
सबसे जरुरी है निरंतर प्रयास. चाहे कुछ भी मन में आये फिर भी निरंतर प्रयास करना अति आवश्यक है.