उपनिषद क्या कहते है?
हमारे उपनिषद कहते है कि यह जो चारो और दिखाई दे रहा है वो सब कुछ ब्रह्मा है. इसका मतलब है की यह सब कुछ एक ही शक्ति से बना हुआ है. वो उर्जा वो शक्ति ईश्वर है. वो बना हुआ नहीं है वो बना रहा है. मानव देह उसकी एक रचना है. लेकिन जो दिखता है वास्तव में केवल वही सत्य नहीं होता. यही बात मानव जन्म के साथ भी है.
मानव देह के साथ एक मन भी है. बिना मन के इंसान आगे बढ़ ही नहीं सकता. मानव की तरक्की के पीछे मानव का मन है. उसके बाद भी बात यही समाप्त नहीं हो जाती. मानव देह है, और उसके पीछे एक मन है और उन दोनों के पीछे एक अनजानी शक्ति आत्मा भी है.
ऋषियों ने जो खोजा
हमारे ऋषियों ने खोजा उन्होंने खोज की कि आत्मा वास्तव में ब्रह्मा का ही अंश है जिसके कारण यह सारा का सारा संसार है.
हम मानव चार अवस्थाओं से लगतार गुजरते है. जागृत अवस्था, स्वप्न अवस्था, सुषुप्ति और तुरिया. जैसे सब कुछ इन आँखों से अलग अलग दिखाई दे रहा है वास्तव में ऐसा है नहीं. वास्तव में सब कुछ ही उर्जा से बना हुआ है. वही उर्जा ही ईश्वर है. लेकिन क्यूंकि हम अपने ही मन के कारण अलगाव की भाषा समझते है. इसलिए हमें अलगाव दिखता है.
जागृत अवस्था ब्रह्मा है
मानव देह के चार स्थान नाभि, हृदय, कंठ और मस्तक. इन चारो स्थानों को एक ही ब्रह्मा प्रकाशित कर रहा है. जागृत अवस्था ब्रह्मा है. स्वपन अवस्था विष्णु रूप है, सुषुप्ति अवस्था शिव है और तुरिया अक्षर रूप है.
शिव सदा शिव है. वो कंठ में है वो ही हमारी सुषुप्ति अवस्था है. जागृत अवस्था को हम जानते है और अनुभव भी करते है, स्वप्न अवस्था को भी हम जानते है और अनुभव भी करते है. परन्तु सुषुप्ति को हम केवल जानते है वो सही तरीके से हमारे अनुभव में नहीं है.
जो स्वप्न के बाद गहरी नींद की अवस्था है वो सुषुप्ति है. हमें पता चलता है कि हमें गहरी नींद आई परन्तु जैसा जागृत और स्वप्न अवस्था में हमें अनुभव होता है वैसा अनुभव नहीं होता.
शिव सुषुप्ति है
शिव सुषुप्ति है. शिव तक जाना पड़ता है. शिव तक पहुचना पड़ता है. शिव ऐसे नहीं मिलते. शिव को जानना ही उस ईश्वर को जानना है. शिव का स्थान कंठ में बताया है. कंठ में ही विशुद्धि चक्र है. विशुद्धि चक्र जब जागृत होता है तो ज्ञान अपने आप बहने लगता है. ज्ञान अपने आप चलने लगता है. ज्ञान ही शिव है. शिव आयेगें तो ज्ञान बहने लगेगा. यही ज्ञान ही विमान बन कर उस परम शक्ति तक पंहुचा देगा. शिव के पीछे के विज्ञानं को समझ कर ही शिव को जाना जा सकता है. वो कंठ में है और उनका रंग नीला है. विशुद्धि चक्र का रंग भी नीला है. यह वही रंग है जो ध्यान में हर साधक को दिखाई देता है.
नीली रौशनी हमेशा रहस्यमयी रही है. शिव भी रहस्यमयी है. भोले भी है. क्यूंकि शुद्ध है अति शुद्ध है इसलिए भोले भी है. शिव को ध्यान से पाया जा सकता है. शिव तक ध्यान से पंहुचा जा सकता है. एक बार उन तक पहुच गए तो आगे का रास्ता शिव ही तय करवा देंगे.
शिव सदा शिव है
शिव सदा शिव है. इसका भी एक मतलब है. पहली दो अवस्थाएं बन रही है और देह का और मन का अनुभव है. तीसरी अवस्था बन नहीं रही है बल्कि बनाने वाली उर्जा का एक रूप है. पहली दो अवस्थाये नित्य नहीं है परन्तु तीसरी अवस्था नित्य है. इसलिए सदा शिव है.
याद रखिये शिव तक पहुचना पड़ता है.