मुख्यरूप से 7 चक्र
मानव शरीर में मुख्यरूप से कुल 7 चक्र होते है. मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्त्रार. हर चक्र की अपनी एक ख़ासियत है. यह मानव उर्जा के ऐसे स्थान है जहाँ विभिन्न कार्यो के लिए उर्जा एकत्रित होती है.
यानि यह 7 चक्र एक तरह से घुमती हुई उर्जा के 7 पुंज है. यहाँ उर्जा कम और अधिक होती रहती है. इसके कम या अधिक होने से हमारे जीवन पर अलग अलग प्रकार से प्रभाव है.
पहला चक्र मूलाधार चक्र
इस श्रंखला का पहला चक्र मूलाधार चक्र है. इसका यंत्र 4 पंखुड़ियों वाला एक लाल रंग का फूल है जो ऊपर की ओर खिला हुआ है. इन 4 पंखुड़ियों पर 4 अक्षर खुदे हुए है. पहला अक्षर स है दूसरा व् तीसरा श और चोथा ष है.
यह हमारी गुदा और जेनिटल organ के बीच स्थित है.
मूलाधार चक्र का एक खास फ्रीक्वेंसी पर घूम रहा है इसलिए यह एक खास तरह की आवाज़ कर रहा है. इसके इस तरह से चक्र के रूप में घुमने से जो आवाज़ निकल रही है वो आवाज़ लं जैसी है इसलिए इसका मन्त्र लं है.
मूलाधार चक्र का तत्व पृथ्वी
हर चक्र एक तत्व से सम्बंधित होता है ऐसे ही मूलाधार चक्र के साथ भी है. मूलाधार चक्र का तत्व पृथ्वी है. इसके तत्व पृथ्वी कर यंत्र पीले रंग का एक वर्ग है. मूलाधार चक्र का रंग लाल है और इसके तत्व पृथ्वी का पीला.
इसके बढ़ने और घटने की वजह से हमारे जीवन में बहुत सारे बदलाव होने लगते है. यह हमारी मूलभूत सुविधाओं से सम्बन्ध रखता है.
जब इस चक्र पर उर्जा बढ़ने लगती है तो मूलभूत सुविधाएँ तो बढ़ जाती है लेकिन जीवन में सम्बन्ध बिगड़ने लगते है. जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ भी अच्छा नहीं लगता. जीवन में तनाव बढ़ जाते है और तनाव अधिक बढ़ जाने से कई तरह की बीमारियाँ शरीर में पैदा हो जाती है. रात को नींद नहीं आती.
जब यह तत्व घट जाता है तो उर्जा का बहाव यहाँ घट जाता है. ऐसा होने पर मूलभूत सुविधाएँ जीवन में घटनी शुरू हो जाती है. जीवन में हर जगह अभाव ही अभाव दिखाई देता है. जीवन को लक्ष्य नहीं मिल पाता है.
इस चक्र का सही होना एक संतुलीय जीवन के लिए बेहद जरुरी है.
इस चक्रों को और इसके तत्व को सही करने के लिए चक्र साधना और तत्व साधना का हम सहारा ले सकते है.